Wednesday, December 28, 2011

मैं हूं, मैं हूं, भ्रष्टाचार


मैं हूं, मैं हूं, भ्रष्टाचार
करता लोगों का जीना हराम
चले हैं अन्ना मुझे भगाने
लोकपाल का डंडा दिखाने
तीसरी बार किया है अनशन
फिर भी नहीं हो पाया मंथन
चलें हैं इस बार जेल भरने
सोनिया के घर धरना देने
है तो बड़ा यह मुश्किल काम
देखते हैं क्या होगा अंजाम?
संसद में भी जंग है जारी
लोकपाल को लाने की तैयारी
सुषमा कहतीं बुरी सरकार
मजबूर,बेबस और लाचार
पीएम साहब बड़े ईमानदार
अर्धशास्त्र का रखते ज्ञान
पर ठहरे सोनिया के दुलारे
फिरते रहते मारे-मारे
देश हो गया है कंगाल
महंगाई ने ले ली जान
सिसक रहा हर इंसान
फिर भी अंधी है सरकार
तभी खड़े हुए लालू साहब
आरक्षण की छेड़ी तान
दिया लोगों को बुद्धि ज्ञान
चिल्लाकर बोले, स्पीकर साहिबा
बंद करो यह तकरार
नहीं बनेगा लोकपाल
दिल में आया मेरे ख्याल
भारत तो है मेरी जान
नहीं छोड़ूंगा इसका साथ
मैं हूं,मैं हूं..भ्रष्टाचार...

जनलोकपाल बिल लाना है तो सत्ता में आइये अन्ना जी


आज मुंबई में अन्ना हजारे का अनशन चल रहा है जो कि तीन दिन तक चलेगा, उसके बाद पूरे देश में जेल भरो आंदोलन होगा। वहीं दूसरी ओर लोकसभा में लोकपाल बिल पर बहस चल रही है। एक तरफ 74 साल के बीमार व्यक्ति ने खाना-पीना छोड़ दिया है और उनकी टीम पूरे देश में लोगों को एकत्र करने में लगी है उन्हें समझा रही है कि सरकार का लोकपाल बिल पूरी तरह से कमजोर है। जब तक देश में जनलोकपाल बिल नहीं आयेगा तब तक भ्रष्टाचार मुक्त देश नहीं बनेगा।

अप्रैल, अगस्त में दो बार अनशन करके आम लोगों को एक मंच पर एक साथ खड़ा करने वाले समाजसेवी अन्ना हजारे का यह प्रयास बेकार शामिल होता दिख रहा है। सरकार बहस पर बहस कर रही है, टीम अन्ना और अन्ना पर सरकार की ओर से प्रहार जारी है। अन्ना टीम के सदस्य एक से बढ़कर काबिल और आदर्श नागरिक हैं। सभी का अपना-अपना बेहतरीन रिकार्ड है, लेकिन फिर भी वो आज अपने लक्ष्य में कामयाब होते नहीं दिख रहे हैं।

आम जनता की नजर में अन्ना और उनकी टीम सही, सच्ची, बेहतरीन, काबिल है लेकिन असफल है, असफल इसलिए क्योंकि वो उस काम में नाकाम हो गये है जिसे वो पूरा करना चाहते हैं। जो हालात दिख रहे हैं उससे फिल्म नायक का वो डॉयलाग याद आता है जिसमें 'फिल्म का खलनायक, नायक से कहता है कि कीचड़ को साफ करने के लिए कीचड़ में उतरना ही पड़ेगा अगर हिम्मत है तो उतर कर दिखाओ।'

कहने का मतलब यह कि केन्द्र सरकार आज बहुमत में हैं और आने वाले आम चुनाव साल 2014 में। मतलब यह की पूरे दो साल बाद उसे चुनावी कटघरे में खड़ा होना पड़ेगा। इसलिए वो शांत है, वो कुछ सुन ही नहीं रही है और ना ही किसी के कहने का उस पर असर पड़ रहा है वो बस अपने कदम आगे बढ़ा रही है। यहां हम यह साफ कर दें कि हमारा कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि सरकार गलत कदम उठा रही है या उसका उठाया कदम गलत है बल्कि हम यह कहना चाहते हैं कि केन्द्र सरकार अभी किसी का डर नहीं है। उसे लगता है कि वो गद्दी पर है इसलिए उसे कोई खतरा नहीं है।

वही दूसरी ओर अन्ना और उनकी टीम गैर राजनैतिक संगठन है। इसलिए उनके चिल्लाने की आवाज संसद की दीवारों से टकरा जरूर रही है लेकिन उसे उसी गति से वापस भी आना पड़ता है। लेकिन अफसोस वो संसद में किसी की आवाज नहीं बन पा रही है। ये परिस्थितियां ये इंगित करती है कि जब तक अन्ना या उनकी टीम संसद के अंदर नहीं पहुंचती तब तक उनकी सारी मेहनत बेकार है।

यानी की अगर सरकारी कानून बदलने हैं तो अन्ना और उनकी टीम को सत्ता में आना होगा। क्योंकि परिवर्तन लाने के लिए खुद को भी बदलना पड़ता है और अगर सरकारी तंत्र में कोई बदलाव लाना है तो टीम अन्ना के किसी भी एक सदस्य को जनता की आवाज बनकर, अन्ना के आदर्शों के साथ राजनैतिक सत्ता में कदम रखना होगा। तभी उन्हें किसी परिवर्तन की उम्मीद करनी चाहिए। क्योंकि चाणक्य की कूटनीति भी यही कहती है कि बुराई को साफ करने के लिए कभी-कभी बुराई का जामा पहनना पड़ता है। इसलिए अभी तक राजनीति को गंदा चोला कहने वाले अन्ना और उनकी टीम को भी यह चोला पहनना होगा वरना उन्हें किसी भी बदलाव और क्रांति की उम्मीद छोड़ देनी चाहिए।

Friday, December 23, 2011

लोकपाल पर संसद बना फिल्मी भवन, सांसद बनें कलाकार


दोस्तों, आज कल हमारा संसद भवन किसी रणक्षेत्र से कम नहीं। बात-बात पर वहां हल्ला मच जाता है जिसमें से आधे दिन तो संसद को स्थगित करना पड़ता है। संसद और सांसदो के हालात को देखकर हिन्दी फिल्मों के कई क्लाइमेक्स सीन आंखो के सामने गुजर जाते हैं। लेकिन फर्क सिर्फ इतना है कि फिल्म में हमें पता है कि नायक कौन और खलनायक कौन?

यहां यह बात सोच पाना थोड़ा मुश्किल है। अब गुरूवार को पेश हुए लोकपाल बिल को ही ले लें। जिस तरह से बिल संसद में पेश किया गया और उसके बाद उस पर लोगों की आपत्तियां दर्ज करायीं गयीं। यह सब कुछ किसी फिल्मी ड्रामे से कम नहीं था। ..अगर हम इस पूरे प्रकरण को फिल्मी अंदाज में पेश करें तो शायद आपको पूरी बात समझ में आ जायेगी।

अगर आप को हमारी बात पसंद ना आये तो हमें माफ करते हुए अपनी नाराजगी को नीचे लिखे कमेंट बॉक्स में दर्ज करायें और अगर पसंद आ जाये तो मुस्कुराकर तारीफ के दो शब्द कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। हमें इंतजार रहेगा। तो चलिए शुरू करते हैं संसद का फिल्मी सेशन...

गुरूवार दिन के 3.30 बजे...

लोकपाल बिल पर सरकार की साख दांव पर है, अगर बिल बन गया तो उसकी जीत है और नहीं बना तो यूपीए की मुसीबत। लेकिन यूपीए सुप्रीमो सोनिया गांधी ने अपनी टीम को हौंसले बुलंद करते हुए बोलीं- 'सोचना क्‍या जो भी होगा देखा जायेगा'...। हम सशक्त बिल लेकर आये हैं और यही पारित होगा। इसलिए यूपीए की पूरी टीम ने बिल को संसद के पटल पर रखा और बैकग्राउंड गीत बजा...

'सुन मितवा...सुन मितवा तुझको क्या डर है रे...अपनी यह धरती है...अपना अंबर है ..रे..आजा रे'

आश्चर्य नहीं कि सांसदो के घर पर यह गाना भगवान के नाम की तरह लिया जाता हो।

लोकपाल बिल के पेश होते ही विरोधियों ने अपना राग अलापा कि यह बेकार और कमजोर बिल है इसे हम पारित नहीं होने देगें। नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज अपनी जगह खड़ी होकर कानून की बारीकियां गिनाते हुए मुस्कुरा कर गातीं हैं

'जिसका मुझे था इंतजार..जिसके लिए दिल था बेकरार..प्यार में हद से गुजर जाना है तो मार देना है तुझको या मर जाना है'

सुषमा के तीखे वाण का जवाब देने वित्तमंत्री प्रणब दा खड़े हुए. उन्होंने सविनय भाव से निवेदन करते हुए कहा कि इस बिल के हर मुद्दे पर बहस होगी और उन्हें यकीन है कि यह बिल पारित होगा उसे कोई नहीं रोक सकता है जिसे वो अगर गाकर कहते थे तो अंदाज शायद ये होता है कि

'नहीं समझें हैं वो हमें तो क्या जाता है..हारी बाजी को जीतना हमें आता है...यहां के हम सिंकदर..चाहें तो कर दें सबको अपनी जेब के अंदर..हमसे पंगा मत लेना मेरे यार'

इसके बाद खड़े हुए राजग प्रमुख लालू प्रसाद यादव। जिन्होंने कहा कि अगर लोकपाल आया तो वो तो दारोगा बन जायेगा, वो तो सीधे पीएम का कॉलर पकड़े गा .. जो कि गलत है..हम विरोध कर रहा हूं तो हमें भ्रष्ट कहा जा रहा है। केजरीवाल और बेदी हमें भ्रष्टाचारी कहते हैं अरे वो क्या हमें समझे जो खुद हमारे सामने बच्चे हैं। हमें बदलने चले हैं जिन्हें खुद कुछ नही आता। शायद लालू के इस बयान पर पीछे से संगीत बजता

'नफरत करने वालों के सीने में आग भार दूं..मैं तो वो परवाना हूं जो पत्थर को मोम कर दूं'

यह थी गुरूवार को संसद के अंदर की गतिविधियां..अब जरा बाहर चलते हैं, लोकपाल बिल पेश हुआ, बहस 27 को होगी। स्पीकर मीरा कुमार ने ऐलान किया और पीएम मनमोहन सिंह लोकसभा सदन से बाहर निकले लेकिन टीवी पत्रकारों से टकरा गये, सवाल पूछा गया कि क्या आपको लगता है कि बिल पारित हो जायेगा उन्होंने मुस्कुराकर हां बोला, हमें पता है कि हम सही है. इसलिए हम सफल होंगे।...

'हम होंगे कामयाब...पूरा है विश्वास है..हम होंगे कामयाब'

अब बात निकली तो दूर तलक जायेगी ही..प्रतिक्रियाओं का दौर जारी हुआ ..अन्ना और अन्ना टीम ने बिल को खारिज किया और जमकर कांग्रेस को कोसा.. केजरीवाल ने बकायादा प्रेसवार्ता करके बिल की ऐसी-तैसी कर दी और कहा कि अनशन और आंदोलन करेगें। सरकार खुद को तानाशाह समझती है यानी कि वो गाते कि

'खुद को क्या समझती है..इतना अकड़ती है'

केजरीवाल ने निशाना साधा तो कांग्रेसस महासचिव दिग्विजय सिंह कहा चुप रहने वाले गरज कर बोले...

'जिनके घर शीशे को हो केजरीवाल..वो दूसरों के घरों में पत्थर नहीं फेंका करते'

जोड़ का तोड़ करने वाले दिग्गी राजा से जब मीडिया ने पूछा कि आप इस तरह की बयानबाजी क्यों करते हैं तो उनका जवाब होता है

'मेरी मर्जी …..मैं चाहे ये करूँ मैं चाहे वो करूँ..मेरी मर्जी.. मैं केजरीवाल को चांटा मारूं.या अन्ना को कहूं ढोंगी मेरी मर्जी'

दिग्विजय सिंह पर तो भाजपा की नजरें तीखी हैं ही क्योंकि दिग्गी राजा का कहना है कि अन्ना और उनकी टीम आरएसएस और भाजपा के इशारे पर काम कर रही है, जिस पर भाजपा ने उन्हें मानसिक रूप से विक्षिप्त घोषित कर दिया है। वो कहती है...

'ये तो पगला है..समझाने से समझे ना'

यह तो रहा पूरा फिल्मी पॉलिटिकल शो ..जो आपके सामने पेश किया गया।। यह फिल्म का एक अंक था जो 22 को खत्म हो गया... लेकिन पिक्चर तो अभी बाकी है मेरे दोस्त...जिसे हम आगे आपको बतायेंगे तब तक आप हमारा इंतजार करते रहिए और सोचते रहिए कि आगे क्या होगा? हम जल्द हाजिर होंगे..बने रहिए हमारे साथ..नमस्कार।

Friday, December 9, 2011

नेताजी... तुमको मिर्ची लगी तो मैं क्‍या करूं


गोविंदा की फिल्‍म कुली नंबर 1 का गीत आपको याद होगा- मैं तो रस्‍ते से जा रहा था, मैं तो भेलपूड़ी खा रहा था, तुमको मिर्ची लगी तो मैं क्‍या करुं.... सच पूछिए तो यह गीत आजकल फेसबुक को छोड़ बाकी तमाम सोशल नेटवर्किंग साइट्स गा रही हैं, जिन पर मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्‍बल ने नकेल करने की कोशिशें की हैं। असल में यह मिर्ची केवल सिब्‍बल को नहीं बल्कि पूरी कांग्रेस पार्टी को लगी है, जो र्पोन तस्‍वीरों का नाम लेकर झल्‍ला रही है।

यह मामला तब शुरु हुआ जब सिब्बल ने कंपनियों के मालिकों के लिए फरमान जारी किया कि वो अपनी साइट्स पर हो रही आपत्तिजनक और अश्‍लील फोटो और कंमेट पर लगाम कसें वरना सरकार को कुछ गाइडलाइन तय करनी होगी। जिसके सामने फेसबुक ने तो घुटने टेक दिये, लेकिन गूगल और याहू ने साफ तौर पर मना कर दिया है।

यहां सोचने वाली बात यह है कि आज ऐसी कौन सी बात हो गयी, जिसके चलते सरकार को यह कदम उठाना पड़ रहा है। कपिल साहब कहते हैं कि वो किसी भी धार्मिक और प्रतिष्ठित हस्तियों के खिलाफ कोई भी अश्लील बात बर्दाश्त नहीं करेंगे। इसलिए सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर जो हो रहा है उसे हर हाल में रोकना जरूरी है।

सच पूछिए तो सिब्‍बल समेत सभी बड़े कांग्रेसी नेताओं को अपनी उन तस्‍वीरों को देख मिर्ची लगी, जिसमें यूपीए अध्‍यक्ष सोनिया गांधी की गोद में दिग्विजय सिंह को और, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की गोद में सिब्‍बल को दर्शाया गया है। ऐसी ही एक तस्‍वीर में सोनिया मनमोहन को नचाते हुए दिख रही हैं।

भाजपा नेताओं ने इसे कांग्रेस का दर्द करार देते हुए कहा कि यह व्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ है। देखा जाये तो भाजपा इस प्रकरण का मजा ले रही है। अगर वाकई में गंभीर होती तो यह सवाल नहीं उठाती कि यह पाबंदी अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता का हनन है। अगर अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता की ही बात है तो भाजपा तब कहां थी जब देश के काबिल और मशहूर कलाकार एम एफ हुसैन को देश निकाला का फरमान सुनाया गया था। उनका कसूर सिर्फ इतना था कि वो देवी-देवताओं को मूर्तियों पर अपने विचारों का ब्रश चला देते थे।

जिसको कि भाजपा ने ही अश्‍लीलता करार दिया था और इसी विरोध के चलते मकबूल फिदा हुसैन को कई अदालतों के चक्कर लगाने पड़े और नतीजतन मरते वक्त एक कलाकार को ना तो अपने देश की हवा नसीब हुई और ना ही दफन होने के लिए मिट्टी। उन्‍हें भारत में नहीं, लंदन में दफनाया गया था।

जिस कांग्रेस को अब मिर्ची लग रही है, वो तब कांग्रेस का जमीर क्‍यों नहीं जागा। उसने भी भाजपा की बातों का सम्मान करते हुए हुसैन साहब को देश से बाहर जाने दिया। जो भाजपा आज कपिल सिब्बल की आलोचना कर रही है उसने भी चंद सालों पहले वही किया था, जो आज कांग्रेस करना चाह रही है। उसने भी तो किसी की स्वतंत्रता के अधिकार को छीनने की कोशिश की थी और वो कामयाब भी रही।

Friday, August 12, 2011

अम्मा अक्सर कहती थीं..मेरा देश महान


दोस्तों हम कभी अंग्रेजों के गुलाम थे.. ये खुली सांसे जो हम आज ले रहे हैं इसे पाने के लिए ना जानें कितनी गोदें सूनी हो गयी थीं और ना जानें कितनी सुहागिनें बेवा..जब भी 15 अगस्त आता है तो हम इतिहास की बातें करने लगते हैं। किताबों के पुराने पन्ने पलटनें शुरू कर देते हैं लेकिन क्या कभी आपने अपने बुजुर्गों की उन आंखों में झांकने की कोशिश की है जिनकी नजरों में आज भी आजादी की वो कहानी जिंदा है। आज आपको मैं वो किस्सा सुनाती हूं जो हमेशा मेरी नानी मुझे सुनाया करती थीं। जिन्हें हम प्यार से अम्मा ही कहते थे क्योंकि मेरी मां उन्हें अम्मा कहा करती थीं।

हम अक्सर गर्मियों में जब घर में लाइट चली जाती थी तो छत पर सोने चले जाया करते थे। नानी की गोद में सिर रख कर कहते थे नानी आज ऐसा कुछ सुनाओ जो वाकई में सच हो । नानी के कांपते हाथ ..बड़े प्यार से मेरे सिर पर पहुंच जाते थे और वो मुस्कुरा कर कहती थीं आज तुम्हें मैं आप बीती सुनाती हूं। ये कहते हुए उनको होठों पर एक मोहक मुस्कान बिखर जाती थी। आसमान की ओर निहारते हुए वो उस दौर में पहुंच जाती थीं जिस समय उनकी उम्र महज 12 या 13 साल की होगी।

अतित के उस यादगार पन्नों के बारे में बात करते हुए एक दिन नानी ने बताया था कि उनसे मेरे नाना की शादी तब हो गयी थी जब मेरे नाना शायद 16साल के होंगे। वो खद्दर का कुर्ता-पैजामा पहनकर स्कूल जाया करते थे। वो वहां पढ़ते थे जहां गोरे यानी अंग्रेजों के बच्चे पढ़ा करते थे। नानी का काम मेरे नाना की मां के साथ घर का काम करना होता था।

जब नाना पढुकर आते थे तो नानी उन्हें अपने हाथ का बना खाना लेकर उनके पास जाती थीं,जहां मेरे नाना उन्हें कभी-कभी अपने स्कूल की बातें बता दिया करते थे। अक्सर नाना फिरंगियों पर बहुत नाराज हुआ करते थे। कहते थे कि अंग्रेज अपनी जुबान यानी अंग्रेजी से तो बहुत इश्क करते हैं लेकिन उन्हें हमारी भाषा यानी हिंदी से नफरत है।

एक दिन नाना ने नानी को बताया था कि वो अंग्रेजो को धूल चटाने वाले हैं,बस तुम देखती जाओ एक दिन फिरंगी जरूर भाग खड़े होंगे। नानी कहती थीं वो जब इस तरह की बातें करते थे तो उन्हें समझ में नहीं आता था लेकिन वो इतना जानती थीं कि नाना कभी झूठ नहीं बोलते। नाना जी ने नानी को काफी कुछ पढ़ा भी दिया था वो कहते थे कि हमारा देश तभी आगे बढ़ सकता है जब यहां का हर नागरिक शिक्षित हो।

वो नानी को भी चोरी-छु्प्पे पढ़ाया करते थे क्योंकि ये वो दौर था जहां लड़कियां पढ़ा नहीं करती थीं। वक्त भागा जा रहा था,धीरे-धीरे लोगों की समझ में आने लगा था कि अंग्रेज उन पर हुकूमत कर रहे हैं क्योंकि उनकी आंखों पर पड़ी पट्टी खुलने लगी थी। लोगों ने पढ़ना शुरू कर दिया था। उसके पीछे कारण था कि कुछ देशी भारतीय लोग घर-घर जाकर लोगों को पढ़ाने लगे हैं जिसके खिलाफ अंग्रेजी हुकूमत थी।

नानी कहती थीं कि मेरे नाना अब बहुत देर से घर आने लगे थे। घरवाले बहुत चितिंत रहने लगे थे लेकिन मेरी नानी कहती थीं मुझे समझ में नहीं आता था कि ये लोग इतने परेशान क्यों रहते हैं? नानी बताती थीं उल्टा मैं तो खुश हो जाती थीं कि अगर मेरे नाना देर से आते थे क्योंकि नानी को अपना गृहकार्य जो कि नाना दे कर गये होते थे उसे पूरा करने का मौका मिल जाता था।

रोज की तरह नानी चूल्हे के पास बैठकर अपना गृहकार्य कर रही थीं कि तभी दरवाजे पर बहुत जोर की आवाज हुई। नानी भी दरवाजे की ओर भागी तो देखा सात पुलिस वालों के साथ एक फिरंगी सेना का आदमी नाना जी के पिताजी और चाचाजी दोनों को अपनी बेल्ट से मार रहा है,गाली दे रहा है और बार-बार कह रहा है कि तुम बागियों को पैदा करते हो। बताओ तुम्हारा बेटा कहां है?

तब नानी को पता चला कि नाना जी कहीं चले गये हैं। पुलिस ने तो नानाजी के पिताजी और चाचाजी को मार-पीट कर छोड़ दिया लेकिन मेरे नाना जी का कहीं पता नहीं चला। तीन महीने बीत गये। घर के सभी लोगों ने लगभग मान लिया था नाना जी अब इस दुनिया में नहीं है।

नानी ने संजना-संवरना छोड़ दिया था। नानी कहती थीं कि लोगों ने उन्हें जिंदा लाश कहना शुरू कर दिया था। कि एक दिन रात के करीब दो बजे के आस-पास घर में दस्तक हुई,लोगों ने समझा कि फिर कोई फिरंगी ने दरवाजा खटखटाया। चाचा जी ने घबराकर,डरते-डरते दरवाजा खोला लेकिन सामने फिरंगी नहीं उनका भतीजा यानी मेरे नाना जी खड़े थे। हाथ में उनके तिरंगा था। चेहरा पूरा ढ़का हुआ था और शरीर पर जगह-जगह चोटों के निशान थे। जो उनको अंग्रेजो ने जेल में कोड़ो से मार-मार कर दिये थे। उनको देखकर चाचाजी समेत सभी चकित और सन्न रह गये।

नाना जी ने चाचाजी का पैर छुआ और कहा कि चाचाजी मुबारक हो..भारत माता की जय बोलो ..हम आजाद हो गये है..ये लो तिंरगा..आज 15 अगस्त है..चाचाजी को तो काटो खून नहीं। जो हाल चाचाजी का था वो ही घर के सभी सदस्यों का..आंखो से छलकते आसूं और कांपते हाथ नानाजी को उनकी मां के पास ले गये जो बिस्तर पर अंतिम सांसे गिन रही थीं।

पिताजी ने कहा..सुनो तुम्हारा बेटा जिंदा है.. मां की आंखो से छलकते आंसूओं के समंदर ने मुस्कुरा कर कहा कि मुझे तुम पर नाज है,तुमने मेरे दूध का कर्ज चुका दिया बेटा। नानाजी ने दोनों हाथ से मां का सिर थाम लिया और बोलें मां.. तुम्हारे आशिर्वाद से आज हमारी भारत माता की बेड़ियां कट गयी हैं। तु्म्हारा लाल..तुम्हारे सामने हैं। क्योंकि वो आज अपनी मां की रक्षा करने में सफल हो गया है।

मां ने कहा कि बेटा तुम यूं ही देश की सेवा करते रहो,भले ही आज तक मैंने गुलामी में सांसे ली है लेकिन अब मेरी मु्क्ति बेड़ियों में नहीं बल्कि तिरंगे के आगोश में होंगी। और मां ने नानाजी को तिलक लगा कर हमेशा के लिए अपनी आंखे बंद कर ली। एक बार फिर खामोशी का समां बंध गया। लेकिन इस बार के छलकते आंसू में बेबसी नहीं बल्कि एक सुकून था। एक एहसास था कि हम आजाद हो गये हैं। हम ऐसी जगह खड़े हैं जहां सिर के ऊपर छत भी हमारी है और पैरों के नीचे की जमीन भी हमारी ही है।

और नानी की आंखो से गुजरता वक्त हमारे गालों पर गिर जाता था..हम उनकी ओर देखते और झट उठकर उनकी आंखे पोंछते थे तो वो कहती थीं बेटा मुझे भी जब तुम जलाने ले जाना तो मुझे भी तिरंगा ही पहनाना। और लड़खड़ाती जुबान से उनके मुँह से निकलता मेरा देश महान...वो हंसकर मुझसे कहती थीं जिस तरह तुम मेरे आंसू नहीं देख सकते उसी तरह बेटा तुम कभी देश को भी रोने नहीं देना। क्योंकि ये देश बहुत कुर्बानियों से मिला है। हम उनसे लिपट जाते थे औऱ कहते थे कि नानी आप चिंता मत करो..हम कभी भी वो काम नहीं करेगें जिससे आपको और देश को कोई दुख पहुंचे..क्योंकि वाकई में ये देश बहुत महान है।

परिचय: मेरे नाना जिनका नाम स्व.श्री कृष्ण दत्त भट्ट है, एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। आजादी की लड़ाई के लिए उन्होंने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था। महात्मा गांधी को अपना आदर्श मानने वाले नाना जी तीन बार आजादी के लिए जेल गये थे। आजाद भारत में उन्होंने अपना पूरा जीवन वाराणसी में काट दिया था। वो'आज'में करीब 15 सालों तक प्रूफ रीडर थे। वो लेखक भी थे। उनकी शानदार लेखनी के लिए उन्हें तीन बार देश की पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा ताम्रपत्र भी दिया जा चुका है। उन्होंने समाजसेवी विनोबा भावे के साथ मिल कर चंबल की घाटियों में जाकर कुख्यात डाकू मानसिंह को आत्मसमर्पण के लिए प्रेरित किया था। जिसमें वो सफल भी रहे थे।

Sunday, June 19, 2011

फादर्स डे पर विशेष : पिता बिना अस्तित्व अधूरा...

कहते हैं मां के चरणों में स्वर्ग होता है, मां बिना जीवन अधूरा है लेकिन अगर मां जीवन की सच्चाई है तो पिता जीवन का आधार, मां बिना जीवन अधूरा है तो पिता बिना अस्तित्व अधूरा। जीवन तो मां से मिल जाता है लेकिन जीवन के थपेड़ो से निपटना तो पिताजी से ही आता है, जिंदगी की सच्चाई के धरातल पर जब बच्चा चलना शुरू करता है तो उसके कदम कहां पड़े और कहां नहीं.. ये समझाने का काम पिता ही करते हैं।

समाज की बंदिशो से अपने बच्चे को निकालने का काम एक पिता ही कर सकता है। पिता अगर पास है तो किसी बच्चे को असुरक्षा नहीं होती है। पिता एक वट वृक्ष है जिसके पास खड़े होकर बड़ी से बड़ी परेशानी छोटी हो जाती है। वक्त आने पर वो दोस्त बन जाते है तभी तो हर लड़की अपने जीवन साथी में अपने पिता का अक्स खोजती है।

जिस तरह उसके पिता उसके पास जब होते हैं तो उसे भरोसा होता है कि कोई भी नापाक इरादे उसे छू नहीं सकते हैं। उसे अपनी सुरक्षा और ना टूटने वाले भरोसे पर गर्व होता है इसलिए वो जब भी अपने साथी के बारे में सोचती है तो उसकी कल्पनाओं में उसके पिता जैसी ही कोई छवि विद्दमान होती है।

जबकि हर बेटे की ख्वाहिश होती है कि वो ऐसा कुछ करे जिससे उसके पिता का सीना चौड़ा हो जाये। उनकी मुस्कुराहट और आंखो की चमक सिर्फ और सिर्फ अपने पिता के लिए होती है। उसकी पहली कामयाबी तब तक अधूरी होती है जब तक उसके पिता आकर उसकी पीठ नहीं थपथपाते हैं।

अक्सर बाप-बेटे एक -दूसरे से भावनाओं का आदान-प्रदान नहीं करते हैं लेकिन सबको पता है कि दोनों ही के दिल में प्रेम का अनुपम समंदर विद्दमान होता है। कभी उस पिता की आंखो में झांकने की कोशिश कीजिये जब उसका बेटा उसके सामने अपनी पहली कमाई लेकर आता है। इसलिए तो कहते है कि पिता का कर्ज आप तब ही चुका सकते है जब आप अपने जैसे ही किसी नन्हे प्राणि को धरती पर लाते हैं।

इसलिए तो कवि गिरिराज जोशी ने कहा है..

पापा!
मुझे लगता था,
'मां' ने मुझे आपार स्नेह दिया,
आपने कुछ भी नहीं,
आप मुझसे प्यार नहीं करते थे।

मगर पापा!
आज जब जीवन की,
हर छोटी-बड़ी बाधाओं को,
आपके 'वे लम्बे-लम्बे भाषण' हल कर देते है,
मैं प्यार की गहराई जान जाता हूँ....

तो चलिए देर किस बात की है ..जाइये अपने पिता के पास और पैर छूकर अपने आप को धन्य कीजिये और जीवन की सच्चाई से रूबरू कराने के लिए उन्हें तहे दिल से धन्यवाद दीजिये। हैप्पी फादर्स डे....

Sunday, May 8, 2011


मां..ये शब्द अपने आप में संपूर्ण हैं.. कहते हैं ना..कोई नारी तभी पूरी होती है जब वो मां बनती हैं। मां जिसके बिना हर कोई अधूरा है, बच्चा जब पैदा होता है, आखें भी नहीं खोलता है, तब से लेकर जिंदगी की अंतिम सांस तक केवल मां ही होती है जो बच्चे को समझती है। तभी तो मां का कहना कोई टाल नहीं सकता है, फिल्मों से लेकर विज्ञापन तक हर जगह मां सक्सेसफूल है, हां वक्त बदला है आज की मां मार्डन हो चुकी है लेकिन उसकी महानता और मर्यादा दोनों अपनी जगह आज भी कायम हैं।

आधुनिकता का असर चारों ओर दिखता है, टीवी पर कल की साड़ी के पल्लू में मुंह छुपाती मां आज जींस में दिखती हैं लेकिन उनकी भावनाओं में आज भी कोई फर्क नहीं है, आज भी उसका पेट तब ही भरता है जब उसके बच्चे खाना खा चुके होते हैं, उसकी आंखो की नींद तभी पूरी होती है, जब उसके बच्चे सो जाते है, वो तभी खुश होती है जब उसके बच्चे मुस्कुराते हैं और उसकी आंखे तब ही नम होती है जब उसके बच्चे दुखी होते है। जिंदगी आज भाग रही है लोगो के पास अपने लिए ही समय नहीं है, हर चीज का विकल्प मार्केट में उपस्थित है, लेकिन शायद मां का कोई विकल्प हो ही नहीं सकता।

आज युवा पीढ़ी तरक्की के लिए अपने मां-बाप से दूर हो जाती है, मीलों दूर वो अपनों को छोड़कर चले आते हैं लेकिन जब थक कर बिस्तर पर पहुंचते हैं तो मां का ही सहलाना उन्हें याद आता है, बाजार के खाने में मां का ही खाना खोजते हैं यहां तक अगर गलती से कुछ अच्छा मिल जाता है तो उनके मुंह से यही निकलता है ये तो मां के खाने जैसा है, कहने का मतलब ये ही कि हर चीज मां जैसी हो सकती है पर वो मां नहीं हो सकती।

8 मई को मां का दिवस है, आज तो मीडिया तंत्र इतना प्रबल है कि मार्केट में मां के गिफ्ट के नाम पर बहुत कुछ उपलब्द्ध है, कई जगह तो बहुत सारे ऑफर भी दिये जा रहे हैं, टीवी पर सेलिब्रेटीज को दिखाया जा रहा है कि वो इस दिन अपनी मां को क्या गिफ्ट दे रहे हैं, सभी जानते हैं कि मां के लिए हर बच्चा कुछ करना चाहता है, इसी का फायदा हमारे मार्केट वाले भी उठा रहे हैं।

लेकिन आपको बता दें शायद दुनिया में मां ही ऐसी है जिसे बदले में कुछ नहीं चाहिए होता है, उसका प्यार निस्वार्थ होता है, तभी तो हर लड़का अपनी बीवी में अपनी मां को खोजता है, उसी तरह का समपर्ण और प्यार की तलाश करता है जो उसे उसकी मां से मिलता है। तो दोस्तों देर किस बात की है, अगर आप अपनी मां के पास है तो तुरंत उनके पास जाईये और अगर नहीं हैं तो तुरंत फोन पर नंबर घूमाइये और बोलिये ..

मां तुम ने मुझे ये जीवन दिया इसके लिए मैं बहुत शुक्रगुजार हूं, इसके बदले में मैं तु्म्हें कुछ नहीं दे सकता हूं लेकिन इतना वादा करता हूं कि तुम्हारे साथ जिंदगी का हर लम्हा जीऊंगा, तुम्हारे बुढ़ापे में तुम्हारी लाठी बनूंगा, आज का दिन भले ही तुम्हारा हो लेकिन गिफ्ट मैं तुमसे मांग रहा हूं कि तुम हमेशा मेरे साथ रहना, मुझे गलत-सही का रास्ता हमेशा तुम ही बताना, ताकि मैं जिंदगी की हर जंग जीत सकूं...आई लव यू मां... आई कांट लीव विदाउट यू...हैप्पी मदर्स डे।

Monday, February 14, 2011

वेलेंटाइन डे स्पेशल: इस दर्द में मजा है...


प्यार एक खूबसूरत एहसास है, बेहतर यही है कि इसे सिर्फ आप रूह से महसूस करें, तभी आप प्यार का आनंद ले पायेंगे। अक्सर ये शब्द आपको कहानियों में सुनने को मिलते है। किसी के लिए ये शब्द बेहद खास होते है तो किसी के लिए कोई मायने नहीं रखते है इसलिए तो आपको आप ही के समाज में देवदास भी मिलते है जो अपने प्यार को खो देने की वजह से अपनी जिंदगी बर्बाद कर लेते है। और इसी समाज में हमें अपने प्यार को जीतने वाले लोग भी दिखायी देते है, भले ही समाज उसे स्वीकारे या नही।

खैर हम यहां ये जिक्र नहीं करेंगे कि क्या सही है और क्या गलत क्योंकि ये ऐसी बहस है जो किसी द्रोपदी की साड़ी से कम नहीं है, जितना बढ़ाओगे बढ़ती है चली जायेगी। आज हम यहां जिक्र करते है उन प्रेमी जोड़ियों की जो प्यार की नई ईबादत लिख गये लेकिन कभी एक नहीं हो पाये। रोमियो-जूलियट से लेकर राधा-कृष्ण तक... हर किसी का प्यार पाक और निर्मल है लेकिन अफसोस ये कभी एक नहीं हो पाया। बात चाहे मीरा की हो या फिऱ शबरी की हर जगह प्यार तो है लेकिन मिलाप नहीं।

आज पूरी दुनिया वेलेंटाइन डे मना रही है , हर तरफ प्यार की बयार है लेकिन अगर इस डे की सच्चाई के बारे में जानेंगे तो पायेगे कि आज का दिन भी किसी के मौत का दिन है जिसे दुनिया ने एक सेलिब्रेशन का डे बना दिया है। क्या करें सोसायटी ही ऐसी है जिसे लोगों के दर्द में मजा आता है। ये बेरहम समाज प्रेमी-प्रेमियों की जूदाई का ही आनंद लेता है, शायद इसे उस दर्द में ही मजा आता है। आज दुनिया आकाश में उड़ रही है लेकिन उसके विचार आज भी किसी दखियानुसी दल-दल में दबे हुए हैं। तभी तो आज भी अगर कोई लड़की अपने से अपनी जिदगी का फैसला करती है तो उसे जिंदगी नहीं मौत मिल जाती है। साल 2010 में हुए ऑनर किलिंग की घटनाएं इस बात का जीता-जागता सबूत हैं।

आपको पता है कि साल 2010 में ऑनर किलिंग की सबसे ज्यादा घटना हरियाणा में हुई है। एक प्रतिष्ठित पत्रिका के सर्वे के मुताबिक हरियाणा में बीते साल 300-500 के बीच ऑनर किलिंग की घटनाएं सामने आयी है। घटना में मारी गई लड़कियों का दोष सिर्फ और सिर्फ इतना ही था कि कि उन्होंने अपने से अपना जीवन साथी चुन लिया था। ऐसा नहीं है कि मारी गई लड़कियां अशिक्षित या नाबालिग थी, बल्कि ये वो लड़कियां थी जो सभ्य समाज की परिभाषा गढ़ती है।

दिल्ली की प्रतिष्ठित बिजनेस स्टैन्टर्ड की पत्रकार निरूपमा पाठक इसका साक्षात उदाहरण है। कोडरमा के घर में वो सिर्फ इस लिए मार दी गई क्योंकि वो अपने पिता के खिलाफ अपनी मर्जी से शादी करना चाहती थी। उसका जुर्म सिर्फ इतना था कि उसने प्यार किया था। हर मीडिया चैनल ने इस खबर को खूब प्रसारित किया क्योंकि ये वो ही समाज है जिसे दर्द में मजा आता है।

आज वेलेंटाइन डे है, हर चैनल, अखबार प्रेम के संदेशो से भरे हुए है, हर कोई कह रहा है कि अपने प्यार का इजहार करो, अपने प्यार को अपने पास बुला लो लेकिन यही लोग कल इस बात को प्रसारित करेंगे कि लड़के-लड़की के प्रेम के इजहार पर दोनों को मार दिया गया। अब बताइये कोई कैसे दहशत के साये में प्यार करें। आखिर क्यों कोई नहीं लोगों की सोच में परिवतिन करने की बात करता है, शायद अगर ऐसा हो जाये तो हमारे समाज को कि सी 14 फरवरी की जरूरत ही ना पड़े। लेकिन क्या करे लोगों के लोगों के दर्द में मजा आता है। अब आप ही बताइये क्या आप भी ऐसा ही सोचते हैं...