Friday, August 12, 2011
अम्मा अक्सर कहती थीं..मेरा देश महान
दोस्तों हम कभी अंग्रेजों के गुलाम थे.. ये खुली सांसे जो हम आज ले रहे हैं इसे पाने के लिए ना जानें कितनी गोदें सूनी हो गयी थीं और ना जानें कितनी सुहागिनें बेवा..जब भी 15 अगस्त आता है तो हम इतिहास की बातें करने लगते हैं। किताबों के पुराने पन्ने पलटनें शुरू कर देते हैं लेकिन क्या कभी आपने अपने बुजुर्गों की उन आंखों में झांकने की कोशिश की है जिनकी नजरों में आज भी आजादी की वो कहानी जिंदा है। आज आपको मैं वो किस्सा सुनाती हूं जो हमेशा मेरी नानी मुझे सुनाया करती थीं। जिन्हें हम प्यार से अम्मा ही कहते थे क्योंकि मेरी मां उन्हें अम्मा कहा करती थीं।
हम अक्सर गर्मियों में जब घर में लाइट चली जाती थी तो छत पर सोने चले जाया करते थे। नानी की गोद में सिर रख कर कहते थे नानी आज ऐसा कुछ सुनाओ जो वाकई में सच हो । नानी के कांपते हाथ ..बड़े प्यार से मेरे सिर पर पहुंच जाते थे और वो मुस्कुरा कर कहती थीं आज तुम्हें मैं आप बीती सुनाती हूं। ये कहते हुए उनको होठों पर एक मोहक मुस्कान बिखर जाती थी। आसमान की ओर निहारते हुए वो उस दौर में पहुंच जाती थीं जिस समय उनकी उम्र महज 12 या 13 साल की होगी।
अतित के उस यादगार पन्नों के बारे में बात करते हुए एक दिन नानी ने बताया था कि उनसे मेरे नाना की शादी तब हो गयी थी जब मेरे नाना शायद 16साल के होंगे। वो खद्दर का कुर्ता-पैजामा पहनकर स्कूल जाया करते थे। वो वहां पढ़ते थे जहां गोरे यानी अंग्रेजों के बच्चे पढ़ा करते थे। नानी का काम मेरे नाना की मां के साथ घर का काम करना होता था।
जब नाना पढुकर आते थे तो नानी उन्हें अपने हाथ का बना खाना लेकर उनके पास जाती थीं,जहां मेरे नाना उन्हें कभी-कभी अपने स्कूल की बातें बता दिया करते थे। अक्सर नाना फिरंगियों पर बहुत नाराज हुआ करते थे। कहते थे कि अंग्रेज अपनी जुबान यानी अंग्रेजी से तो बहुत इश्क करते हैं लेकिन उन्हें हमारी भाषा यानी हिंदी से नफरत है।
एक दिन नाना ने नानी को बताया था कि वो अंग्रेजो को धूल चटाने वाले हैं,बस तुम देखती जाओ एक दिन फिरंगी जरूर भाग खड़े होंगे। नानी कहती थीं वो जब इस तरह की बातें करते थे तो उन्हें समझ में नहीं आता था लेकिन वो इतना जानती थीं कि नाना कभी झूठ नहीं बोलते। नाना जी ने नानी को काफी कुछ पढ़ा भी दिया था वो कहते थे कि हमारा देश तभी आगे बढ़ सकता है जब यहां का हर नागरिक शिक्षित हो।
वो नानी को भी चोरी-छु्प्पे पढ़ाया करते थे क्योंकि ये वो दौर था जहां लड़कियां पढ़ा नहीं करती थीं। वक्त भागा जा रहा था,धीरे-धीरे लोगों की समझ में आने लगा था कि अंग्रेज उन पर हुकूमत कर रहे हैं क्योंकि उनकी आंखों पर पड़ी पट्टी खुलने लगी थी। लोगों ने पढ़ना शुरू कर दिया था। उसके पीछे कारण था कि कुछ देशी भारतीय लोग घर-घर जाकर लोगों को पढ़ाने लगे हैं जिसके खिलाफ अंग्रेजी हुकूमत थी।
नानी कहती थीं कि मेरे नाना अब बहुत देर से घर आने लगे थे। घरवाले बहुत चितिंत रहने लगे थे लेकिन मेरी नानी कहती थीं मुझे समझ में नहीं आता था कि ये लोग इतने परेशान क्यों रहते हैं? नानी बताती थीं उल्टा मैं तो खुश हो जाती थीं कि अगर मेरे नाना देर से आते थे क्योंकि नानी को अपना गृहकार्य जो कि नाना दे कर गये होते थे उसे पूरा करने का मौका मिल जाता था।
रोज की तरह नानी चूल्हे के पास बैठकर अपना गृहकार्य कर रही थीं कि तभी दरवाजे पर बहुत जोर की आवाज हुई। नानी भी दरवाजे की ओर भागी तो देखा सात पुलिस वालों के साथ एक फिरंगी सेना का आदमी नाना जी के पिताजी और चाचाजी दोनों को अपनी बेल्ट से मार रहा है,गाली दे रहा है और बार-बार कह रहा है कि तुम बागियों को पैदा करते हो। बताओ तुम्हारा बेटा कहां है?
तब नानी को पता चला कि नाना जी कहीं चले गये हैं। पुलिस ने तो नानाजी के पिताजी और चाचाजी को मार-पीट कर छोड़ दिया लेकिन मेरे नाना जी का कहीं पता नहीं चला। तीन महीने बीत गये। घर के सभी लोगों ने लगभग मान लिया था नाना जी अब इस दुनिया में नहीं है।
नानी ने संजना-संवरना छोड़ दिया था। नानी कहती थीं कि लोगों ने उन्हें जिंदा लाश कहना शुरू कर दिया था। कि एक दिन रात के करीब दो बजे के आस-पास घर में दस्तक हुई,लोगों ने समझा कि फिर कोई फिरंगी ने दरवाजा खटखटाया। चाचा जी ने घबराकर,डरते-डरते दरवाजा खोला लेकिन सामने फिरंगी नहीं उनका भतीजा यानी मेरे नाना जी खड़े थे। हाथ में उनके तिरंगा था। चेहरा पूरा ढ़का हुआ था और शरीर पर जगह-जगह चोटों के निशान थे। जो उनको अंग्रेजो ने जेल में कोड़ो से मार-मार कर दिये थे। उनको देखकर चाचाजी समेत सभी चकित और सन्न रह गये।
नाना जी ने चाचाजी का पैर छुआ और कहा कि चाचाजी मुबारक हो..भारत माता की जय बोलो ..हम आजाद हो गये है..ये लो तिंरगा..आज 15 अगस्त है..चाचाजी को तो काटो खून नहीं। जो हाल चाचाजी का था वो ही घर के सभी सदस्यों का..आंखो से छलकते आसूं और कांपते हाथ नानाजी को उनकी मां के पास ले गये जो बिस्तर पर अंतिम सांसे गिन रही थीं।
पिताजी ने कहा..सुनो तुम्हारा बेटा जिंदा है.. मां की आंखो से छलकते आंसूओं के समंदर ने मुस्कुरा कर कहा कि मुझे तुम पर नाज है,तुमने मेरे दूध का कर्ज चुका दिया बेटा। नानाजी ने दोनों हाथ से मां का सिर थाम लिया और बोलें मां.. तुम्हारे आशिर्वाद से आज हमारी भारत माता की बेड़ियां कट गयी हैं। तु्म्हारा लाल..तुम्हारे सामने हैं। क्योंकि वो आज अपनी मां की रक्षा करने में सफल हो गया है।
मां ने कहा कि बेटा तुम यूं ही देश की सेवा करते रहो,भले ही आज तक मैंने गुलामी में सांसे ली है लेकिन अब मेरी मु्क्ति बेड़ियों में नहीं बल्कि तिरंगे के आगोश में होंगी। और मां ने नानाजी को तिलक लगा कर हमेशा के लिए अपनी आंखे बंद कर ली। एक बार फिर खामोशी का समां बंध गया। लेकिन इस बार के छलकते आंसू में बेबसी नहीं बल्कि एक सुकून था। एक एहसास था कि हम आजाद हो गये हैं। हम ऐसी जगह खड़े हैं जहां सिर के ऊपर छत भी हमारी है और पैरों के नीचे की जमीन भी हमारी ही है।
और नानी की आंखो से गुजरता वक्त हमारे गालों पर गिर जाता था..हम उनकी ओर देखते और झट उठकर उनकी आंखे पोंछते थे तो वो कहती थीं बेटा मुझे भी जब तुम जलाने ले जाना तो मुझे भी तिरंगा ही पहनाना। और लड़खड़ाती जुबान से उनके मुँह से निकलता मेरा देश महान...वो हंसकर मुझसे कहती थीं जिस तरह तुम मेरे आंसू नहीं देख सकते उसी तरह बेटा तुम कभी देश को भी रोने नहीं देना। क्योंकि ये देश बहुत कुर्बानियों से मिला है। हम उनसे लिपट जाते थे औऱ कहते थे कि नानी आप चिंता मत करो..हम कभी भी वो काम नहीं करेगें जिससे आपको और देश को कोई दुख पहुंचे..क्योंकि वाकई में ये देश बहुत महान है।
परिचय: मेरे नाना जिनका नाम स्व.श्री कृष्ण दत्त भट्ट है, एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। आजादी की लड़ाई के लिए उन्होंने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था। महात्मा गांधी को अपना आदर्श मानने वाले नाना जी तीन बार आजादी के लिए जेल गये थे। आजाद भारत में उन्होंने अपना पूरा जीवन वाराणसी में काट दिया था। वो'आज'में करीब 15 सालों तक प्रूफ रीडर थे। वो लेखक भी थे। उनकी शानदार लेखनी के लिए उन्हें तीन बार देश की पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा ताम्रपत्र भी दिया जा चुका है। उन्होंने समाजसेवी विनोबा भावे के साथ मिल कर चंबल की घाटियों में जाकर कुख्यात डाकू मानसिंह को आत्मसमर्पण के लिए प्रेरित किया था। जिसमें वो सफल भी रहे थे।
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विचारोत्तेजक पोस्ट, बढ़िया प्रस्तुति,आभार.
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