Wednesday, December 28, 2011

जनलोकपाल बिल लाना है तो सत्ता में आइये अन्ना जी


आज मुंबई में अन्ना हजारे का अनशन चल रहा है जो कि तीन दिन तक चलेगा, उसके बाद पूरे देश में जेल भरो आंदोलन होगा। वहीं दूसरी ओर लोकसभा में लोकपाल बिल पर बहस चल रही है। एक तरफ 74 साल के बीमार व्यक्ति ने खाना-पीना छोड़ दिया है और उनकी टीम पूरे देश में लोगों को एकत्र करने में लगी है उन्हें समझा रही है कि सरकार का लोकपाल बिल पूरी तरह से कमजोर है। जब तक देश में जनलोकपाल बिल नहीं आयेगा तब तक भ्रष्टाचार मुक्त देश नहीं बनेगा।

अप्रैल, अगस्त में दो बार अनशन करके आम लोगों को एक मंच पर एक साथ खड़ा करने वाले समाजसेवी अन्ना हजारे का यह प्रयास बेकार शामिल होता दिख रहा है। सरकार बहस पर बहस कर रही है, टीम अन्ना और अन्ना पर सरकार की ओर से प्रहार जारी है। अन्ना टीम के सदस्य एक से बढ़कर काबिल और आदर्श नागरिक हैं। सभी का अपना-अपना बेहतरीन रिकार्ड है, लेकिन फिर भी वो आज अपने लक्ष्य में कामयाब होते नहीं दिख रहे हैं।

आम जनता की नजर में अन्ना और उनकी टीम सही, सच्ची, बेहतरीन, काबिल है लेकिन असफल है, असफल इसलिए क्योंकि वो उस काम में नाकाम हो गये है जिसे वो पूरा करना चाहते हैं। जो हालात दिख रहे हैं उससे फिल्म नायक का वो डॉयलाग याद आता है जिसमें 'फिल्म का खलनायक, नायक से कहता है कि कीचड़ को साफ करने के लिए कीचड़ में उतरना ही पड़ेगा अगर हिम्मत है तो उतर कर दिखाओ।'

कहने का मतलब यह कि केन्द्र सरकार आज बहुमत में हैं और आने वाले आम चुनाव साल 2014 में। मतलब यह की पूरे दो साल बाद उसे चुनावी कटघरे में खड़ा होना पड़ेगा। इसलिए वो शांत है, वो कुछ सुन ही नहीं रही है और ना ही किसी के कहने का उस पर असर पड़ रहा है वो बस अपने कदम आगे बढ़ा रही है। यहां हम यह साफ कर दें कि हमारा कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि सरकार गलत कदम उठा रही है या उसका उठाया कदम गलत है बल्कि हम यह कहना चाहते हैं कि केन्द्र सरकार अभी किसी का डर नहीं है। उसे लगता है कि वो गद्दी पर है इसलिए उसे कोई खतरा नहीं है।

वही दूसरी ओर अन्ना और उनकी टीम गैर राजनैतिक संगठन है। इसलिए उनके चिल्लाने की आवाज संसद की दीवारों से टकरा जरूर रही है लेकिन उसे उसी गति से वापस भी आना पड़ता है। लेकिन अफसोस वो संसद में किसी की आवाज नहीं बन पा रही है। ये परिस्थितियां ये इंगित करती है कि जब तक अन्ना या उनकी टीम संसद के अंदर नहीं पहुंचती तब तक उनकी सारी मेहनत बेकार है।

यानी की अगर सरकारी कानून बदलने हैं तो अन्ना और उनकी टीम को सत्ता में आना होगा। क्योंकि परिवर्तन लाने के लिए खुद को भी बदलना पड़ता है और अगर सरकारी तंत्र में कोई बदलाव लाना है तो टीम अन्ना के किसी भी एक सदस्य को जनता की आवाज बनकर, अन्ना के आदर्शों के साथ राजनैतिक सत्ता में कदम रखना होगा। तभी उन्हें किसी परिवर्तन की उम्मीद करनी चाहिए। क्योंकि चाणक्य की कूटनीति भी यही कहती है कि बुराई को साफ करने के लिए कभी-कभी बुराई का जामा पहनना पड़ता है। इसलिए अभी तक राजनीति को गंदा चोला कहने वाले अन्ना और उनकी टीम को भी यह चोला पहनना होगा वरना उन्हें किसी भी बदलाव और क्रांति की उम्मीद छोड़ देनी चाहिए।

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