Wednesday, December 28, 2011

मैं हूं, मैं हूं, भ्रष्टाचार


मैं हूं, मैं हूं, भ्रष्टाचार
करता लोगों का जीना हराम
चले हैं अन्ना मुझे भगाने
लोकपाल का डंडा दिखाने
तीसरी बार किया है अनशन
फिर भी नहीं हो पाया मंथन
चलें हैं इस बार जेल भरने
सोनिया के घर धरना देने
है तो बड़ा यह मुश्किल काम
देखते हैं क्या होगा अंजाम?
संसद में भी जंग है जारी
लोकपाल को लाने की तैयारी
सुषमा कहतीं बुरी सरकार
मजबूर,बेबस और लाचार
पीएम साहब बड़े ईमानदार
अर्धशास्त्र का रखते ज्ञान
पर ठहरे सोनिया के दुलारे
फिरते रहते मारे-मारे
देश हो गया है कंगाल
महंगाई ने ले ली जान
सिसक रहा हर इंसान
फिर भी अंधी है सरकार
तभी खड़े हुए लालू साहब
आरक्षण की छेड़ी तान
दिया लोगों को बुद्धि ज्ञान
चिल्लाकर बोले, स्पीकर साहिबा
बंद करो यह तकरार
नहीं बनेगा लोकपाल
दिल में आया मेरे ख्याल
भारत तो है मेरी जान
नहीं छोड़ूंगा इसका साथ
मैं हूं,मैं हूं..भ्रष्टाचार...

जनलोकपाल बिल लाना है तो सत्ता में आइये अन्ना जी


आज मुंबई में अन्ना हजारे का अनशन चल रहा है जो कि तीन दिन तक चलेगा, उसके बाद पूरे देश में जेल भरो आंदोलन होगा। वहीं दूसरी ओर लोकसभा में लोकपाल बिल पर बहस चल रही है। एक तरफ 74 साल के बीमार व्यक्ति ने खाना-पीना छोड़ दिया है और उनकी टीम पूरे देश में लोगों को एकत्र करने में लगी है उन्हें समझा रही है कि सरकार का लोकपाल बिल पूरी तरह से कमजोर है। जब तक देश में जनलोकपाल बिल नहीं आयेगा तब तक भ्रष्टाचार मुक्त देश नहीं बनेगा।

अप्रैल, अगस्त में दो बार अनशन करके आम लोगों को एक मंच पर एक साथ खड़ा करने वाले समाजसेवी अन्ना हजारे का यह प्रयास बेकार शामिल होता दिख रहा है। सरकार बहस पर बहस कर रही है, टीम अन्ना और अन्ना पर सरकार की ओर से प्रहार जारी है। अन्ना टीम के सदस्य एक से बढ़कर काबिल और आदर्श नागरिक हैं। सभी का अपना-अपना बेहतरीन रिकार्ड है, लेकिन फिर भी वो आज अपने लक्ष्य में कामयाब होते नहीं दिख रहे हैं।

आम जनता की नजर में अन्ना और उनकी टीम सही, सच्ची, बेहतरीन, काबिल है लेकिन असफल है, असफल इसलिए क्योंकि वो उस काम में नाकाम हो गये है जिसे वो पूरा करना चाहते हैं। जो हालात दिख रहे हैं उससे फिल्म नायक का वो डॉयलाग याद आता है जिसमें 'फिल्म का खलनायक, नायक से कहता है कि कीचड़ को साफ करने के लिए कीचड़ में उतरना ही पड़ेगा अगर हिम्मत है तो उतर कर दिखाओ।'

कहने का मतलब यह कि केन्द्र सरकार आज बहुमत में हैं और आने वाले आम चुनाव साल 2014 में। मतलब यह की पूरे दो साल बाद उसे चुनावी कटघरे में खड़ा होना पड़ेगा। इसलिए वो शांत है, वो कुछ सुन ही नहीं रही है और ना ही किसी के कहने का उस पर असर पड़ रहा है वो बस अपने कदम आगे बढ़ा रही है। यहां हम यह साफ कर दें कि हमारा कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि सरकार गलत कदम उठा रही है या उसका उठाया कदम गलत है बल्कि हम यह कहना चाहते हैं कि केन्द्र सरकार अभी किसी का डर नहीं है। उसे लगता है कि वो गद्दी पर है इसलिए उसे कोई खतरा नहीं है।

वही दूसरी ओर अन्ना और उनकी टीम गैर राजनैतिक संगठन है। इसलिए उनके चिल्लाने की आवाज संसद की दीवारों से टकरा जरूर रही है लेकिन उसे उसी गति से वापस भी आना पड़ता है। लेकिन अफसोस वो संसद में किसी की आवाज नहीं बन पा रही है। ये परिस्थितियां ये इंगित करती है कि जब तक अन्ना या उनकी टीम संसद के अंदर नहीं पहुंचती तब तक उनकी सारी मेहनत बेकार है।

यानी की अगर सरकारी कानून बदलने हैं तो अन्ना और उनकी टीम को सत्ता में आना होगा। क्योंकि परिवर्तन लाने के लिए खुद को भी बदलना पड़ता है और अगर सरकारी तंत्र में कोई बदलाव लाना है तो टीम अन्ना के किसी भी एक सदस्य को जनता की आवाज बनकर, अन्ना के आदर्शों के साथ राजनैतिक सत्ता में कदम रखना होगा। तभी उन्हें किसी परिवर्तन की उम्मीद करनी चाहिए। क्योंकि चाणक्य की कूटनीति भी यही कहती है कि बुराई को साफ करने के लिए कभी-कभी बुराई का जामा पहनना पड़ता है। इसलिए अभी तक राजनीति को गंदा चोला कहने वाले अन्ना और उनकी टीम को भी यह चोला पहनना होगा वरना उन्हें किसी भी बदलाव और क्रांति की उम्मीद छोड़ देनी चाहिए।

Friday, December 23, 2011

लोकपाल पर संसद बना फिल्मी भवन, सांसद बनें कलाकार


दोस्तों, आज कल हमारा संसद भवन किसी रणक्षेत्र से कम नहीं। बात-बात पर वहां हल्ला मच जाता है जिसमें से आधे दिन तो संसद को स्थगित करना पड़ता है। संसद और सांसदो के हालात को देखकर हिन्दी फिल्मों के कई क्लाइमेक्स सीन आंखो के सामने गुजर जाते हैं। लेकिन फर्क सिर्फ इतना है कि फिल्म में हमें पता है कि नायक कौन और खलनायक कौन?

यहां यह बात सोच पाना थोड़ा मुश्किल है। अब गुरूवार को पेश हुए लोकपाल बिल को ही ले लें। जिस तरह से बिल संसद में पेश किया गया और उसके बाद उस पर लोगों की आपत्तियां दर्ज करायीं गयीं। यह सब कुछ किसी फिल्मी ड्रामे से कम नहीं था। ..अगर हम इस पूरे प्रकरण को फिल्मी अंदाज में पेश करें तो शायद आपको पूरी बात समझ में आ जायेगी।

अगर आप को हमारी बात पसंद ना आये तो हमें माफ करते हुए अपनी नाराजगी को नीचे लिखे कमेंट बॉक्स में दर्ज करायें और अगर पसंद आ जाये तो मुस्कुराकर तारीफ के दो शब्द कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। हमें इंतजार रहेगा। तो चलिए शुरू करते हैं संसद का फिल्मी सेशन...

गुरूवार दिन के 3.30 बजे...

लोकपाल बिल पर सरकार की साख दांव पर है, अगर बिल बन गया तो उसकी जीत है और नहीं बना तो यूपीए की मुसीबत। लेकिन यूपीए सुप्रीमो सोनिया गांधी ने अपनी टीम को हौंसले बुलंद करते हुए बोलीं- 'सोचना क्‍या जो भी होगा देखा जायेगा'...। हम सशक्त बिल लेकर आये हैं और यही पारित होगा। इसलिए यूपीए की पूरी टीम ने बिल को संसद के पटल पर रखा और बैकग्राउंड गीत बजा...

'सुन मितवा...सुन मितवा तुझको क्या डर है रे...अपनी यह धरती है...अपना अंबर है ..रे..आजा रे'

आश्चर्य नहीं कि सांसदो के घर पर यह गाना भगवान के नाम की तरह लिया जाता हो।

लोकपाल बिल के पेश होते ही विरोधियों ने अपना राग अलापा कि यह बेकार और कमजोर बिल है इसे हम पारित नहीं होने देगें। नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज अपनी जगह खड़ी होकर कानून की बारीकियां गिनाते हुए मुस्कुरा कर गातीं हैं

'जिसका मुझे था इंतजार..जिसके लिए दिल था बेकरार..प्यार में हद से गुजर जाना है तो मार देना है तुझको या मर जाना है'

सुषमा के तीखे वाण का जवाब देने वित्तमंत्री प्रणब दा खड़े हुए. उन्होंने सविनय भाव से निवेदन करते हुए कहा कि इस बिल के हर मुद्दे पर बहस होगी और उन्हें यकीन है कि यह बिल पारित होगा उसे कोई नहीं रोक सकता है जिसे वो अगर गाकर कहते थे तो अंदाज शायद ये होता है कि

'नहीं समझें हैं वो हमें तो क्या जाता है..हारी बाजी को जीतना हमें आता है...यहां के हम सिंकदर..चाहें तो कर दें सबको अपनी जेब के अंदर..हमसे पंगा मत लेना मेरे यार'

इसके बाद खड़े हुए राजग प्रमुख लालू प्रसाद यादव। जिन्होंने कहा कि अगर लोकपाल आया तो वो तो दारोगा बन जायेगा, वो तो सीधे पीएम का कॉलर पकड़े गा .. जो कि गलत है..हम विरोध कर रहा हूं तो हमें भ्रष्ट कहा जा रहा है। केजरीवाल और बेदी हमें भ्रष्टाचारी कहते हैं अरे वो क्या हमें समझे जो खुद हमारे सामने बच्चे हैं। हमें बदलने चले हैं जिन्हें खुद कुछ नही आता। शायद लालू के इस बयान पर पीछे से संगीत बजता

'नफरत करने वालों के सीने में आग भार दूं..मैं तो वो परवाना हूं जो पत्थर को मोम कर दूं'

यह थी गुरूवार को संसद के अंदर की गतिविधियां..अब जरा बाहर चलते हैं, लोकपाल बिल पेश हुआ, बहस 27 को होगी। स्पीकर मीरा कुमार ने ऐलान किया और पीएम मनमोहन सिंह लोकसभा सदन से बाहर निकले लेकिन टीवी पत्रकारों से टकरा गये, सवाल पूछा गया कि क्या आपको लगता है कि बिल पारित हो जायेगा उन्होंने मुस्कुराकर हां बोला, हमें पता है कि हम सही है. इसलिए हम सफल होंगे।...

'हम होंगे कामयाब...पूरा है विश्वास है..हम होंगे कामयाब'

अब बात निकली तो दूर तलक जायेगी ही..प्रतिक्रियाओं का दौर जारी हुआ ..अन्ना और अन्ना टीम ने बिल को खारिज किया और जमकर कांग्रेस को कोसा.. केजरीवाल ने बकायादा प्रेसवार्ता करके बिल की ऐसी-तैसी कर दी और कहा कि अनशन और आंदोलन करेगें। सरकार खुद को तानाशाह समझती है यानी कि वो गाते कि

'खुद को क्या समझती है..इतना अकड़ती है'

केजरीवाल ने निशाना साधा तो कांग्रेसस महासचिव दिग्विजय सिंह कहा चुप रहने वाले गरज कर बोले...

'जिनके घर शीशे को हो केजरीवाल..वो दूसरों के घरों में पत्थर नहीं फेंका करते'

जोड़ का तोड़ करने वाले दिग्गी राजा से जब मीडिया ने पूछा कि आप इस तरह की बयानबाजी क्यों करते हैं तो उनका जवाब होता है

'मेरी मर्जी …..मैं चाहे ये करूँ मैं चाहे वो करूँ..मेरी मर्जी.. मैं केजरीवाल को चांटा मारूं.या अन्ना को कहूं ढोंगी मेरी मर्जी'

दिग्विजय सिंह पर तो भाजपा की नजरें तीखी हैं ही क्योंकि दिग्गी राजा का कहना है कि अन्ना और उनकी टीम आरएसएस और भाजपा के इशारे पर काम कर रही है, जिस पर भाजपा ने उन्हें मानसिक रूप से विक्षिप्त घोषित कर दिया है। वो कहती है...

'ये तो पगला है..समझाने से समझे ना'

यह तो रहा पूरा फिल्मी पॉलिटिकल शो ..जो आपके सामने पेश किया गया।। यह फिल्म का एक अंक था जो 22 को खत्म हो गया... लेकिन पिक्चर तो अभी बाकी है मेरे दोस्त...जिसे हम आगे आपको बतायेंगे तब तक आप हमारा इंतजार करते रहिए और सोचते रहिए कि आगे क्या होगा? हम जल्द हाजिर होंगे..बने रहिए हमारे साथ..नमस्कार।

Friday, December 9, 2011

नेताजी... तुमको मिर्ची लगी तो मैं क्‍या करूं


गोविंदा की फिल्‍म कुली नंबर 1 का गीत आपको याद होगा- मैं तो रस्‍ते से जा रहा था, मैं तो भेलपूड़ी खा रहा था, तुमको मिर्ची लगी तो मैं क्‍या करुं.... सच पूछिए तो यह गीत आजकल फेसबुक को छोड़ बाकी तमाम सोशल नेटवर्किंग साइट्स गा रही हैं, जिन पर मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्‍बल ने नकेल करने की कोशिशें की हैं। असल में यह मिर्ची केवल सिब्‍बल को नहीं बल्कि पूरी कांग्रेस पार्टी को लगी है, जो र्पोन तस्‍वीरों का नाम लेकर झल्‍ला रही है।

यह मामला तब शुरु हुआ जब सिब्बल ने कंपनियों के मालिकों के लिए फरमान जारी किया कि वो अपनी साइट्स पर हो रही आपत्तिजनक और अश्‍लील फोटो और कंमेट पर लगाम कसें वरना सरकार को कुछ गाइडलाइन तय करनी होगी। जिसके सामने फेसबुक ने तो घुटने टेक दिये, लेकिन गूगल और याहू ने साफ तौर पर मना कर दिया है।

यहां सोचने वाली बात यह है कि आज ऐसी कौन सी बात हो गयी, जिसके चलते सरकार को यह कदम उठाना पड़ रहा है। कपिल साहब कहते हैं कि वो किसी भी धार्मिक और प्रतिष्ठित हस्तियों के खिलाफ कोई भी अश्लील बात बर्दाश्त नहीं करेंगे। इसलिए सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर जो हो रहा है उसे हर हाल में रोकना जरूरी है।

सच पूछिए तो सिब्‍बल समेत सभी बड़े कांग्रेसी नेताओं को अपनी उन तस्‍वीरों को देख मिर्ची लगी, जिसमें यूपीए अध्‍यक्ष सोनिया गांधी की गोद में दिग्विजय सिंह को और, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की गोद में सिब्‍बल को दर्शाया गया है। ऐसी ही एक तस्‍वीर में सोनिया मनमोहन को नचाते हुए दिख रही हैं।

भाजपा नेताओं ने इसे कांग्रेस का दर्द करार देते हुए कहा कि यह व्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ है। देखा जाये तो भाजपा इस प्रकरण का मजा ले रही है। अगर वाकई में गंभीर होती तो यह सवाल नहीं उठाती कि यह पाबंदी अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता का हनन है। अगर अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता की ही बात है तो भाजपा तब कहां थी जब देश के काबिल और मशहूर कलाकार एम एफ हुसैन को देश निकाला का फरमान सुनाया गया था। उनका कसूर सिर्फ इतना था कि वो देवी-देवताओं को मूर्तियों पर अपने विचारों का ब्रश चला देते थे।

जिसको कि भाजपा ने ही अश्‍लीलता करार दिया था और इसी विरोध के चलते मकबूल फिदा हुसैन को कई अदालतों के चक्कर लगाने पड़े और नतीजतन मरते वक्त एक कलाकार को ना तो अपने देश की हवा नसीब हुई और ना ही दफन होने के लिए मिट्टी। उन्‍हें भारत में नहीं, लंदन में दफनाया गया था।

जिस कांग्रेस को अब मिर्ची लग रही है, वो तब कांग्रेस का जमीर क्‍यों नहीं जागा। उसने भी भाजपा की बातों का सम्मान करते हुए हुसैन साहब को देश से बाहर जाने दिया। जो भाजपा आज कपिल सिब्बल की आलोचना कर रही है उसने भी चंद सालों पहले वही किया था, जो आज कांग्रेस करना चाह रही है। उसने भी तो किसी की स्वतंत्रता के अधिकार को छीनने की कोशिश की थी और वो कामयाब भी रही।