Saturday, June 12, 2010

बस थोड़ा सा रूमानी हो जाएं....

आजकल बैंगलौर में मानसून ने मौसम को बेहद दिलकश बना दिया है, रिमझिम फुहारों ने मौसम के मिजाज में शरारत और प्यार की रंगत भर दी है। बारिश की बूंदो ने सख्त से सख्त दिल को भी झूमने पर मजबूर कर दिया है, प्रकृति ने अपने आँचल से बैंगलोर की वादियो को और भी लुभावना बना दियाहै। ऐसे ही सुंदर दृश्यों को नजारा आप भी करे और रूमानी हो जाए।
परमपिता परमेश्वर ने कितनी हसीन और शानदार दुनिया बनाईं है। मुझे तो हैरत होती है ऐसे लोगो से जो दुनिया को कोसते रहते है, कमियां निकालते रहते है और दुखी रहते है और आसपास के वातावरण को भी बोझिल करते हैं। उनके दुनिया को देखने का तरीका ही ग़लत होता है।.....

ईश्वर ने जो धरोहर हमको सौपी है उसमे बचाए रखने मे प्रकृति प्रेमी ही मददगार होते है, विनाश और विध्वंस के पैरोकार क्या जाने प्रेम और सद्भाव की बातें। प्रकृति तो अपना काम तो बखूबी कर रही है पर हम कहने को तो अपने को बड़ा ही उदारवादी, समझदार, प्रेमी और संवेदनशील मानते हैं पर दरअसल हम है नही ऐसे। किसी अपरिचित से बात करना तो दूर हम उसे एक मुस्कराहट तक नही दे पाते हैं जिसमे हमारा कुछ खर्च नही होता है। हमे अनजाना डर समाया रहता है की न जाने बात करने से या मुस्कुरा देने से वह हमारा नुकसान न कर दे या उसकी हमे कोई मदद न करनी पड़ जाए।....

मेरा यह अनुभव रहा है जब हम किसी से निश्छलता से भावनाओं का आदान प्रदान करते है तो हमे भी उसी प्रकार का व्यवहार मिलता है। इस हिचक के कारण हमने बहुत छोटी छोटी खुशिया खो दी है । क्या हम इस रूमानी और सकारात्मक मन की बात को मानने के लिए तैयार है जैसा हम अक्सर मन ही मन मे कल्पना भी करते हैं और जागती आंखों से एक ख्वाबगाह भी लेते है अपनी कल्पनाओं का, अपनी रूमानियत का, अपने समर्पण का, अपने को निछावर कर देने का। किसी शायर की चंद लाइने शायद मेरे जज्बात को आप तक पहुचाने मदद करें....

क्यों पुतलों सी भरी इस दुनिया में
मिलते नहीं कोई हमसफ़र हमखयाल कागज़ के रिश्ते-रिवाजों से अलग मुझको एक नयी जिंदगानी दे दो... सबसे अलग कोने में पड़े हुए घुटती साँसों को कपड़े में लपेट इस बीते दिन को कल का सूरज
मिल जाए, इतना अब रूमानी दे दो ....

इतनी सारी मेरे मन की बातों को लिखकर मैंने तो अपना ध्येय प्रकट कर ही दिया है, अब बारी है आपकी......