Friday, November 19, 2010


मुहब्बत एक एहसासों की पावन सी कहानी [^] है, कहीं कबीरा दीवाना था कहीं मीरा दीवानी है, जीं हां दोस्तों वाकई में मुहब्बत एहसासों की ही कहानी है, इस बात को मैंने आज ही समझा है और शायद अगर हकीकत को आंखो से नहीं देखा होता तो यकीं कर पाना मेरे लिए भी मुश्किल होता। अगर आप भी इस रोचक सत्य से वाकिफ होंगे तो मेरी तरह आप भी कुमार विश्वास की लिखी इन लाइनों को यूं ही गुनगुनाने लगेंगे।

जो लोग बैंगलोर में रहते हैं वो जानते हैं कि BTM बस स्टॉप [^] पर सुबह से शाम तक किस तरह लोगों का मेला लगा रहता है, लोगों के पास पैर रखने की भी जगह नहीं होती है, खैर जो बैंगलोर को नहीं जानते हैं उनके लिए मैं बता दू कि बैगलोर जितना आईटी [^] कंपनियों और सदबहार मौसम के लिए मशहूर है उतना ही वो अपनी ट्रैफिक जाम के लिए बदनाम भी जिसमें BTM एरिया पहले नंबर पर आता है। अब तो आप ने इस एरिया की व्यस्तता का अंदाजा लगा ही लिया होगा।

इस व्यस्त इलाके से जब मैं गुजरती हूँ रोजाना तो मुझे एक व्यक्ति जिसकी उम्र लगभग 60- 70 वर्ष के बीच में होगी, बस स्टॉप पर खड़ा दिखायी देता है जो इलेक्ट्रानिक सिटी से आ रही बस का इंतजार करता रहता है, हर बस से उतरने वाले लोगो की ओर वो बहुत उत्सुकता से देखता है, उन्हीं में से एक बस में से एक बूढ़ी महिला जिसकी उम्र महज 55-60 के बीच में होगी, उतरती है, जिसे वो बूढ़ा व्यक्ति हाथ पकड़ कर रोड क्रास करवाता है और जब तक वो दूसरी और चली नहीं जाती है तब तक उसे देखता रहता है, यहां पर एक बात आप को बता दूं कि वो बुजुर्ग महिला नेत्रहीन है और शायद वो फूल बेचने का काम करती है क्योंकि वो जब बस से उतरती है तो उसके हाथ में फूल की डलिया होती है जिसमें कुछ मुरझाये और कुछ ताजे फूल होते हैं। रोज मैं इस तस्वीर को अपनी आंखो से देखा करती थी आज उस सच से मुखातिब होने का मौका मिला।

हुआ यूं कि रोज की तरह मैं आज भी अपने ऑफिस के लिए निकली, बस स्टैंड पर रोज की तरह काफी [^] भीड़ थी। रोजाना की अपेक्षा आज व्यस्तता ज्यादा थी राम जाने कारण क्या था लेकिन सच यही था। किसी तरह बस स्टैंड पर मैं पहुंची तो देखा कि जो बुजुर्ग व्यक्ति जिन्हें मैं रोज देखा करती थी आज मेरे ही बगल में खड़े हैं, चूंकि भीड बहुत ज्यादा थी और उनकी नजर पर उम्र हावी इसलिए उन्होंने दो बार मुझ से ही पूछ लिया कि बेटी क्या जो बस सामने से आ रही है वो इलेक्ट्रानिक सिटी की है, मैने कहां नही अंकल, जब उन्होंने दोबारा मुझ से पूछा तो मैंने बोला अभी नहीं आयी है अगर आती है तो मैं बता दूंगी, उन्होंने मुझे थैंक्स बोला और साथ ही पूछ भी लिया कि आप कहां से है? उनकी बातों से लग रहा था कि वो बहुत बीमार हैं, मैंने उनसे पूछ ही लिया कि क्या आप की तबियत ठीक नहीं है तो उन्होंने बोला कि उन्हे वाइरल फीवर हो गया है, डॉक्टर ने उन्हें बेड रेस्ट करने के लिए बोला है, लेकिन उन्हें किसी की वजह से यहां आना पड़ा।

धीरे-धीरे बातों का सिलसिला चलने लगा कि तभी इलेक्ट्रानिक सिटी की बस आ गई, मैनें बोला अंकल बस आ गई है, तो वो आगे बढ़ गये, करीब 10 मिनट बाद वो वापस आ गये लेकिन इस बार वो काफी परेशान लग रहे थे, मैंने सोचा शायद भीड़ की वजह से हैं, इसलिए पूछ ही लिया कि क्या आपको सीट नहीं मिली, तो उन्होंने बोला नहीं वो नहीं आयी, मैंने पूछा कौन, जवाब मिला वो जिसे मैं रोड क्रास कराता हूँ?
मैने बोला अच्छा वो फूल वाली आंटी तो उन्होंने आश्चर्य से मेरी ओर देखा और बोला क्या तुम उसे जानती हो, मैने बोला नहीं, बस रोज आपके साथ उन्हें देखती हूँ, इसलिए बोल दिया, वैसे उनका नाम क्या है, उन्होंने बोला मैं नहीं जानता, मैंने बोला मतलब तो उन्होंने कहा मैं नहीं जानता कि वो कौन है? कहां से आती है और कहां जाती है? उसे तो मेरी सूरत और आवाज भी नहीं पता क्योंकि वो ना तो वो देख सकती है और ना ही सुन सकती है। आज से 20 साल पहले मुझे इसी बस चौराहे पर रोड क्रास करते समय मिली थी, उसे जो भाषा आती है वो मुझे नहीं आती इसलिए हमारे बीच संवाद भी नहीं होते हैं।

मैं रोज मार्निंग वॉक करने के बाद यहां आता हूँ और उसे रोड क्रास कराता हूं, बस इसके आलावा मेरा कोई काम नहीं है। खैर लगता है कि आज शायद उसकी तबियत ठीक ना हो इसलिए वो नहीं आयी, कोई बात नहीं बेटा तुम अपने ऑफिस जाओं मैं फिर कल मिलूंगा इसी जगह इसी स्टॉप पर। कह कर वो चले गए और मैं सोचती रही कि इस रिश्ते को क्या नाम दूँ, जो सिर्फ एहसासों की कहानी है, यकीन नहीं हो रहा था इस वाकये पर लेकिन शायद आंखो देखी और कानों सुनी ना होती तो मुझे भी ये एक ख्याली वाकया लगता लेकिन यह सच है जिस पर यकीन करना पड़ेगा।

अब आपको इस बात पर यकीन है कि नहीं अपनी प्रतिक्रिया से हमें रूबरू करवाये।

Wednesday, November 17, 2010

मुझे तो लूट लिया मिलकर अशोक-राजा-कलमाड़ी ने .....

पहले चव्हाण, फिर कलमाड़ी और अब ए राजा का इस्तीफा, क्या बात है? क्या कहने , ऐसी सरकार क्या देखी है आपने जो पूरी तरह सरकारी काम [^] करती है , आप समझ ही गये होंगे कि सरकारी काम क्या होता है? पहले लूटों फिर कहो हम सुधारक है जनता की सेवा करने वाले लेकिन हुजूर कोई ये बताये कि मैं कहां जाऊं, मैं तो पूरी तरह बर्बाद हो चुका हूँ। रात-दिन काम करता हूँ तब तो कहीं जाकर पैसे मिलते हैं। गाढ़ी कमाई का कुछ हिस्सा सीधे तौर पर सरकार के खाते में चला जाता है, ताकि सरकार मेरी जरूरतों का ध्यान रखे और सरकार है कि उसे मैं इतने प्यारा हूँ कि बस वो बजा डालती है वो मेरा बैंड।
कभी उसके शागिर्द 'आदर्श घोटाला' करते हैं तो कभी खेल के नाम पर अपनी कोठियां बनवा डालते है। कुछ 'राजा' जैसे महान होते है जो कर डालते हैं देश का सबसे बड़ा घोटाला। और हमारी कांग्रेस [^] सरकार बड़े प्यार से अपने इन प्यारे सपूतों से इस्तीफे मांग लेती है और कहती है कि उन्हें मेरा पूरा-पूरा ख्याल है, इसलिए वो भ्रष्ट्र नेताओं से मुझे छुटकारा दिला रही है।

अब कोई उनसे पूछे कि जब ये घोटाले होते हैं तब उसे मेरा ख्याल क्यों नहीं आता, तब उसका प्यार कहां चला जाता है? वो इन सारे नेताओं से इस्तीफे क्यों मांगती है अगर उसे मेरा वाकई ख्याल है तो वो उनसे उन पैसों का हिसाब क्यों नहीं मांगती है जो मेरी गाढ़ी कमाई का हिस्सा है।

2g स्पैक्ट्रम घोटाले
से उजागर हुए राजा कल तक यही चिल्लाते रहे कि कुछ भी हो जाये इस्तीफा नहीं दूंगा, फिर अचानक उनका इस्तीफा सामने आ गया क्योंकि शायद उनसे यही कहा गया कि सिर्फ इस्तीफा ही तो मांग रहे हैं, पैसे तो नहीं मांग रहे, हिसाब तो नहीं मांग रहे, औऱ राजा साहब मुस्कुराते हुए बोले ठीक है 'करूणानिधि जी दे देता हूँ मैं इस्तीफा, जैसा आप कहें' और भाई साहब मंत्रालय को बॉय-बॉय कहते हुए निकल गये।

क्यों मैने कुछ गलत कहा क्या? यही तो हुआ है, सदियों से यही होता आया और आगे भी यही होता रहेगा, खुदा और इतिहास गवाह है, जब भी कोई घोटाला होता है, विपक्ष चिल्लाता है, सत्ता पक्ष सफाई देती है, जब उससे काम नहीं चलता है तो इस्तीफे ले लेती है, कभी-कभी कमेटी बन जाती है, जांच [^] कमेटी बैठती है, जब ज्यादा शोर मचता है तो रिपोर्ट जल्दी आ जाती है।

लेकिन कभी नहीं होता कि पैसों का हिसाब हो, कभी किसी नेता की पॉकेट से पैसे नहीं लिये जाते हैं जबकि सबको पता है कि इन भ्रष्ट्र नेताओं ने ही बिना डकार के मेरे पैसे खाये है, सरकार अपने इन फर्जी नुमाइदों को उनकी पोस्ट से हटाकर चिल्लाती है कि उसे मेरा ख्याल आ गया है लेकिन क्या उसके कोरे वादों से मेरे वो पैसे वापस आ जायेंगे जो मेरे बच्चों के निवाले से काट कर उसके नुमांइदों की तिजोरियां भरते आयें हैं।

अब आप को बड़ी उत्सुकता हो रही होगी कि मैं कौन हूँ। तो जनाब मैं आप ही का दोस्त, भाई या बहन जो कह लो वो हूँ, मेरा नाम आम आदमी है, जो 24 घंटे में से 14 घंटे अपना पसीना बहाकर कुछ पैसे जुटाता है, ताकि उसका परिवार की जीविका [^] अच्छे से चले, उसी जी-तोड़ पसीने की कमाई से कमाये कुछ पैसे सरकार के नाम पर आंख बंद कर के दे देता हुँ, ताकि सरकार हमारा ख्याल रखेगी लेकिन सरकार बहुत ज्यादा मेहरबान होकर मुझे घोटालों का तोहफा दे देती है जिसके तकाजे पर हमें मिलते हैं चव्हाण, कलमाड़ी और राजा के इस्तीफे।

जिनसे केवल सरकार खुश और विपक्ष शांत हो जाता है लेकिन मेरा क्या जो सत्ता के भरे चौराहे पर लुट चुका है और पूरी तरह से राजनीति का कोपभाजन बन चुका है, अब आप बताइये की क्या इस्तीफों की तथाकथित मलहम से मेरा दर्द कम हो सकता है?