आज गणतंत्र दिवस के मौके पर कोई स्कूल और कोई ऐसा मंच नहीं होगा जहां
लता की आवाज में कवि प्रदीप के हाथों से लिखा गीत .. जो शहीद हुए हैं उनकी
जरा याद करो कुर्बानी' ना बजा हो.. लेकिन क्या वाकई में आज हमने किसी को
याद किया है? यह सवाल किसी नेता, अभिनेता या फिर किसी मशहूर हस्ती से नहीं
बल्कि आप लोगों से हैं। आज के पूरे दिन आपने क्या किया?
राष्ट्रीय पर्व है आज। दशहरा, दिवाली और होली की तरह ना आपने आज नये कपड़े
पहने होंगे, ना घर में पकवान बनाये होंगे। जिनके घर में बच्चे स्कूल जाते
हैं उनकी जेबें भले ही ढीली होंगी लेकिन 26 जनवरी के लिए नहीं बस बच्चों की
ख्वाहिश पूरी करने के लिए क्योंकि आज के दिन बच्चों को स्कूल में पर्फार्म
करना होता है।
सुबह से फेसबुक पर लोगों ने बधाई संदेश दिये हैं। जो ज्यादा जागरूक हैं वो
सिस्टम को कोस रहे हैं। नेताओं को बुरा-भला कह रहे हैं और कह रहे हैं कि
काहे का गणतंत्र दिवस, ना यहां दामिनी को न्याय मिल रहा है? ना ही
भ्रष्टाचार का अंत हो रहा है और ना ही आतंकवाद खत्म हो रहा है। जो इंटरनेट
पर सक्रिय नहीं वो आज अपने घर के सारे बचे काम निपटा रहे होंगे तो किसी के
लिए आज छुट्टी का दिन है। आप में से कितने लोग हैं जो इस बात का जवाब हां
में देंगे कि जब राष्ट्रगान की धुन टीवी पर सुनायी दी तो आप ने अपने घर में
अपने बच्चों के साथ अपनी जगह पर खड़े होकर राष्ट्र गान गाया।
बस मन गया राष्ट्रीय पर्व, तो आप में और देश के उन लोगों में जिन्हें आप
कोस रहे हैं बताइये फर्क क्या रह गया? दोनों ने ही तो आज कुछ नहीं किया।
आज किसी को शहिद हेमराज की याद नहीं आयी क्यों? क्यों आज आपमें से किसी ने
यह नहीं कहा कि शहीद हेमराज आप अमर रहें। हां यह जरूर याद रहा कि सरकार ने
शहीद हेमराज का सिर लाने के लिए पाकिस्तान पर दवाब नहीं डाला।
सिस्टम को दोष देते-देते हम आज अपना कर्तव्य भूल चूके हैं और यह बात
हमारी आदत में इस कदर शामिल हो चुकी है कि जिससे पार पाना मुश्किल ही नहीं
शायद नाममुकिन सा हो गया है? हर चीज के लिए हम लोगों को दोषी ठहरा देते हैं
और आगे बढ़ जाते हैं। सिस्टम को पूरी तरह से खराब करने में क्या हमारा हाथ
नहीं हैं? क्या आपको नहीं लगता कि अधिकारों की बात करते-करते हम देश के
प्रति अपने कर्तव्य को भूल चूके हैं।
हमें यह तो याद है कि हमें यह चीज नहीं मिली लेकिन यह याद नहीं कि हमें यह
चीज क्यों नहीं मिली? यह 'क्यों' शब्द शायद हमारे शब्दकोश से गायब ही हो
चुका है जो कि देश में फैली अराजकता का अस्सी प्रतिशत जिम्मेदार है। जिसके
कारण आज देश का हर नागरिक कहीं ना कहीं अकर्मठ हो गया है। आज हमसभी 'हम' की
बात ही नहीं करते हैं आज 'हम' 'मैं' में बदल चुका है? जिसके कारण आज देश
की उन समस्याओं जिनके बारे में हर कोई केवल बात कर रहा है उसके लिए हम भी
कहीं ना कहीं दोषी है।
आदर्शो और न्याय की बात करने के लिए लोगों को आदर्श व्यक्तित्व पेश करना
होता है, तभी उसकी मांग सही होती है लेकिन जब हम खुद न्यायोचित काम नहीं
करते हैं तो हमें दूसरों से शिकायत का भी कोई हक नहीं है? जिस दिन हम यह
बात समझ जायेंगे उस दिन शायद देश की आधे से ज्यादा मुश्किलों का हल निकल
आयेगा। लेकिन हालात और वर्तमान के परिवेश में नही लगता कि वो दिन जल्दी
आयेगा? लेकिन जिस दिन भी आयेगा ना, उस दिन वाकई में हम सही में गणतंत्र हो
जायेंगे।
आप क्या कहते हैं? अपनी बात जरूर से जरूर लिखें, हमें उत्तर का इंतजार
रहेगा?