Wednesday, October 10, 2012

गजल सम्राट जगजीत सिंह को गये आज एक साल पूरा हो गया. आज ही के दिन उन्होंने जिंदगी का साथ छोड़ दिया था और बिना किसी से कहे...सबसे बहुत दूर चले गये जहां से वो कभी भी वापस नहीं आ सकते हैं। लेकिन कहते हैं ना कि इंसान मरता है आवाज नहीं मरती उसी तरह से जगजीत सिंह भी हमारे बीच में अपनी मखमली आवाज के जरिये हमेशा मौजूद रहेंगे।

गजल गायिकी को एक मुक्कमल मुकाम देने वाले जगजीत सिंह ने पिछले साल मुंबई के लीलावती अस्पताल में 70 साल की उम्र में जिंदगी को अलविदा कहा था,  जहां वो पिछले दो हफ्ते से ब्रेन हेमरेज के कारण भर्ती थे। 8 फरवरी 1941 को राजस्थान के गंगानगर में जन्मे जगजीत सिंह गायिकी के सरताज कहे जाते हैं। उन्होंने गजल को नया आयाम दिया।
करोड़ों सुनने वालों के चलते सिंह साहब कुछ ही दशकों में जग को जीतने वाले जगजीत बन गए। शुरूआती शिक्षा गंगानगर के खालसा स्कूल में हुई और बाद पढ़ने के लिए जालंधर आ गए। डीएवी कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली और इसके बाद कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय से इतिहास में पोस्ट ग्रेजुएशन भी किया। उन्हें पहला ब्रेक गुजरात फिल्म के लिए मिला।
लेकिन उसके बाद संगीत के जूनन ने उन्हें मायानगरी मुंबई पहुंचा दिया, जहां उन्होंने अपने सुरों से वो इबादत लिखी जिसे मिटा पाना नामुमकीन है। अपनी आवाज से लोगों के बीच पहचान बनाने वाले जगजीत सिंह 1969 में मशहूर गायिका चित्रा से प्रेम विवाह रचाया।
अर्थ, प्रेमगीत, लीला, सरफरोश, तुम बिन, वीर जारा ये वो फिल्में हैं जिन्होंने उनको हिंदी सिनेमा जगत पर शिखर पर पहुंचाया। लेकिन अपने स्टेज शो के जरिये उन्होंने उर्दू से भरी गजलों को आम आदमी की आवाज बना दिया।
फिल्मी सितारों को ही नहीं, बल्कि अटल बिहारी जैसे कवि की रचना गाकर जगजीत सिंह ने ये जता दिया कि वो केवल गीतकारों के गीत ही नहीं गा सकते हैं। पंजाबी, बंगाली, गुजराती, हिंदी और नेपाली भाषाओं में गाना गाने वाले जगजीत सिंह को पद्मश्री और पद्मविभूषण से नवाजा जा चुका है।
अपने जवान बेटे को एक सड़क दुर्घटना में खो देने का गम उनकी गजल और रचनाओं में अक्सर सुना जाता था। इसलिए शायद आज भी उनकी गजलों में वो दर्द अक्सर छलकता है जो सुनने वालों के दुखों को कम कर देता है।
नींद भी देखी..ख्वाब भी देखा...कोई नहीं है ऐसा...सही में जगजीत सिंह जैसा कोई ना था, ना है और ना ही होगा। संगीत के उपासक, गजल के पूजारी और सुंरों के सरताज जगजीत सिंह की आत्मा के लिए हम भी प्रार्थना करते हैं। वाकई आज उनके अंदाज में ही पूरा देश उन्हें याद कर रहा है और कह रहा है ..
तुम चले जाओगे तो सोचेंगे
हमने क्या खोया हमने क्या पाया
हम जिसे गुनगुना नहीं सकते
वक्त ने ऐसा गीत क्यूं गाया....

Thursday, January 12, 2012

किसी भी पार्टी को नहीं चाहिये मिडिल क्‍लास का वोट!


चुनावी दंगल में हर पार्टी पूरी कोशिश कर रही है कि वो किसी भी तरह अपने वोटरों को रिझा ले। कहीं मुस्लिम आरक्षण की बात हो रही है तो कहीं दलित वोटो के लेकर खींचा- तानी मची हुई है। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी यूपी में अतिपिछड़ा रैली कर रहे हैं तो भाजपा दलितों को रिझाने के लिए उमा भारती और कटियार को चुनावी मैदान में उतारने की सोच रही है तो वहीं सपा की क्रांति रथयात्रा मुसलमानों को अधिक आरक्षण का लोभ दे रही है। मायावती तो पहले ही अपने आप को दलितों की मसीहा बता चुकी है।

लेकिन सोचने वाली बात यह है कि क्या उत्तर प्रदेश का पूरा वोट दलितों और मुस्लिमों पर ही सिमट गया है। क्या 403 सीटों पर होने वाले चुनाव केवल मुस्लिम और दलित लोगो के लिए हो रहे हैं। इससे तो सिर्फ दो बातें निकल कर सामने आती है पहली तो यह कि या तो सारी राजनीतिक पार्टियां यह मानकर बैठ गयी है कि सवर्णों का तो हिसाब पक्का है बस मुस्लिमों और दलितों को मनाने की जरूरत है।

दूसरी यह कि सारी पार्टियों को पहले से पता चल गया है कि सवर्णो में किस वर्ग के वोट उन्हें मिलने वाले हैं। जैसे कि ठाकुरों की पहली पसंद हो सकता है कांग्रेस हो तो पंडितों की पार्टी भाजपा हो, वगैरह..वगैरह।

बड़ी-बड़ी बातें करने वाले राजनीतिक दलों के चुनावी प्रचार में तीसरे नंबर पर आते हैं गरीब। जो किसी भी जाति या धर्म के हो सकते हैं। उनके लिए भी राजनीतिक पार्टियां तमाम योजनाएं चलाने के वादे कर रही है, लेकिन इन सबके बीच जो खो गया है वो है मध्‍यमवर्ग। यहां मध्‍यम वर्ग को हम किसी जाति या धर्म से नहीं जोड़ रहे हैं।

किसी भी पार्टी के पास न तो मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए कोई योजना है और ना ही किसी तरह का कोई जिक्र। किसी भी पार्टी के एजेंडे में यह बात नहीं है कि अगर वो सत्ता में आते हैं तो समाज के मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए क्या करेंगे। जबकि सरकार के नीतियों की सबसे ज्यादा मार इसी वर्ग को पड़ती है।

ना तो वो गरीबी रेखा के नीचे आते हैं कि उन्हें किसी सरकारी योजना का लाभ मिले और ना तो वो इतनी कमाई कर पाते हैं कि वो अपना लंबा-चौड़ा बैंक-बैलेंस बना कर भविष्य सुरक्षित रख लें। आये दिन बढ़ती महंगाई की मार उन्‍हें ही सबसे ज्‍यादा पड़ती है और भ्रष्टाचार से भी यही वर्ग सबसे ज्‍यादा पीड़ित हैं। सबसे अहम बात यह है कि अगर यह वर्ग जागरूक हो जाये तो वो किसी भी चुनाव के राजनीतिक समीकरण बदल सकता है।

आश्चर्य की बात यह है कि इस ओर आखिर किसी पार्टी की ओर से कई कदम क्यों नहीं उठाया जा रहा है। सोचने वाली बात यह भी है कि आखिर कोई पार्टी मिडिल क्लास के लिए कोई दमदार योजना क्‍यों नहीं लाती या ऐसे पैकज लेकर क्‍यों नहीं आती, कोल्‍हू के बैल वाली जिंदगी से ऊपर उठ सकें।

इस सवाल के बारे में आप क्या सोचते हैं अपने जवाब नीचे लिखे कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें।