मुहब्बत एक एहसासों की पावन सी कहानी है, कहीं कबीरा दीवाना था कहीं मीरा दीवानी है, जीं हां दोस्तों वाकई में मुहब्बत एहसासों की ही कहानी है, इस बात को मैंने आज ही समझा है और शायद अगर हकीकत को आंखो से नहीं देखा होता तो यकीं कर पाना मेरे लिए भी मुश्किल होता। अगर आप भी इस रोचक सत्य से वाकिफ होंगे तो मेरी तरह आप भी कुमार विश्वास की लिखी इन लाइनों को यूं ही गुनगुनाने लगेंगे।
जो लोग बैंगलोर में रहते हैं वो जानते हैं कि BTM बस स्टॉप पर सुबह से शाम तक किस तरह लोगों का मेला लगा रहता है, लोगों के पास पैर रखने की भी जगह नहीं होती है, खैर जो बैंगलोर को नहीं जानते हैं उनके लिए मैं बता दू कि बैगलोर जितना आईटी कंपनियों और सदबहार मौसम के लिए मशहूर है उतना ही वो अपनी ट्रैफिक जाम के लिए बदनाम भी जिसमें BTM एरिया पहले नंबर पर आता है। अब तो आप ने इस एरिया की व्यस्तता का अंदाजा लगा ही लिया होगा।
इस व्यस्त इलाके से जब मैं गुजरती हूँ रोजाना तो मुझे एक व्यक्ति जिसकी उम्र लगभग 60- 70 वर्ष के बीच में होगी, बस स्टॉप पर खड़ा दिखायी देता है जो इलेक्ट्रानिक सिटी से आ रही बस का इंतजार करता रहता है, हर बस से उतरने वाले लोगो की ओर वो बहुत उत्सुकता से देखता है, उन्हीं में से एक बस में से एक बूढ़ी महिला जिसकी उम्र महज 55-60 के बीच में होगी, उतरती है, जिसे वो बूढ़ा व्यक्ति हाथ पकड़ कर रोड क्रास करवाता है और जब तक वो दूसरी और चली नहीं जाती है तब तक उसे देखता रहता है, यहां पर एक बात आप को बता दूं कि वो बुजुर्ग महिला नेत्रहीन है और शायद वो फूल बेचने का काम करती है क्योंकि वो जब बस से उतरती है तो उसके हाथ में फूल की डलिया होती है जिसमें कुछ मुरझाये और कुछ ताजे फूल होते हैं। रोज मैं इस तस्वीर को अपनी आंखो से देखा करती थी आज उस सच से मुखातिब होने का मौका मिला।
हुआ यूं कि रोज की तरह मैं आज भी अपने ऑफिस के लिए निकली, बस स्टैंड पर रोज की तरह काफी भीड़ थी। रोजाना की अपेक्षा आज व्यस्तता ज्यादा थी राम जाने कारण क्या था लेकिन सच यही था। किसी तरह बस स्टैंड पर मैं पहुंची तो देखा कि जो बुजुर्ग व्यक्ति जिन्हें मैं रोज देखा करती थी आज मेरे ही बगल में खड़े हैं, चूंकि भीड बहुत ज्यादा थी और उनकी नजर पर उम्र हावी इसलिए उन्होंने दो बार मुझ से ही पूछ लिया कि बेटी क्या जो बस सामने से आ रही है वो इलेक्ट्रानिक सिटी की है, मैने कहां नही अंकल, जब उन्होंने दोबारा मुझ से पूछा तो मैंने बोला अभी नहीं आयी है अगर आती है तो मैं बता दूंगी, उन्होंने मुझे थैंक्स बोला और साथ ही पूछ भी लिया कि आप कहां से है? उनकी बातों से लग रहा था कि वो बहुत बीमार हैं, मैंने उनसे पूछ ही लिया कि क्या आप की तबियत ठीक नहीं है तो उन्होंने बोला कि उन्हे वाइरल फीवर हो गया है, डॉक्टर ने उन्हें बेड रेस्ट करने के लिए बोला है, लेकिन उन्हें किसी की वजह से यहां आना पड़ा।
धीरे-धीरे बातों का सिलसिला चलने लगा कि तभी इलेक्ट्रानिक सिटी की बस आ गई, मैनें बोला अंकल बस आ गई है, तो वो आगे बढ़ गये, करीब 10 मिनट बाद वो वापस आ गये लेकिन इस बार वो काफी परेशान लग रहे थे, मैंने सोचा शायद भीड़ की वजह से हैं, इसलिए पूछ ही लिया कि क्या आपको सीट नहीं मिली, तो उन्होंने बोला नहीं वो नहीं आयी, मैंने पूछा कौन, जवाब मिला वो जिसे मैं रोड क्रास कराता हूँ? मैने बोला अच्छा वो फूल वाली आंटी तो उन्होंने आश्चर्य से मेरी ओर देखा और बोला क्या तुम उसे जानती हो, मैने बोला नहीं, बस रोज आपके साथ उन्हें देखती हूँ, इसलिए बोल दिया, वैसे उनका नाम क्या है, उन्होंने बोला मैं नहीं जानता, मैंने बोला मतलब तो उन्होंने कहा मैं नहीं जानता कि वो कौन है? कहां से आती है और कहां जाती है? उसे तो मेरी सूरत और आवाज भी नहीं पता क्योंकि वो ना तो वो देख सकती है और ना ही सुन सकती है। आज से 20 साल पहले मुझे इसी बस चौराहे पर रोड क्रास करते समय मिली थी, उसे जो भाषा आती है वो मुझे नहीं आती इसलिए हमारे बीच संवाद भी नहीं होते हैं।
मैं रोज मार्निंग वॉक करने के बाद यहां आता हूँ और उसे रोड क्रास कराता हूं, बस इसके आलावा मेरा कोई काम नहीं है। खैर लगता है कि आज शायद उसकी तबियत ठीक ना हो इसलिए वो नहीं आयी, कोई बात नहीं बेटा तुम अपने ऑफिस जाओं मैं फिर कल मिलूंगा इसी जगह इसी स्टॉप पर। कह कर वो चले गए और मैं सोचती रही कि इस रिश्ते को क्या नाम दूँ, जो सिर्फ एहसासों की कहानी है, यकीन नहीं हो रहा था इस वाकये पर लेकिन शायद आंखो देखी और कानों सुनी ना होती तो मुझे भी ये एक ख्याली वाकया लगता लेकिन यह सच है जिस पर यकीन करना पड़ेगा।
अब आपको इस बात पर यकीन है कि नहीं अपनी प्रतिक्रिया से हमें रूबरू करवाये।
पहले चव्हाण, फिर कलमाड़ी और अब ए राजा का इस्तीफा, क्या बात है? क्या कहने , ऐसी सरकार क्या देखी है आपने जो पूरी तरह सरकारी काम करती है , आप समझ ही गये होंगे कि सरकारी काम क्या होता है? पहले लूटों फिर कहो हम सुधारक है जनता की सेवा करने वाले लेकिन हुजूर कोई ये बताये कि मैं कहां जाऊं, मैं तो पूरी तरह बर्बाद हो चुका हूँ। रात-दिन काम करता हूँ तब तो कहीं जाकर पैसे मिलते हैं। गाढ़ी कमाई का कुछ हिस्सा सीधे तौर पर सरकार के खाते में चला जाता है, ताकि सरकार मेरी जरूरतों का ध्यान रखे और सरकार है कि उसे मैं इतने प्यारा हूँ कि बस वो बजा डालती है वो मेरा बैंड। कभी उसके शागिर्द 'आदर्श घोटाला' करते हैं तो कभी खेल के नाम पर अपनी कोठियां बनवा डालते है। कुछ 'राजा' जैसे महान होते है जो कर डालते हैं देश का सबसे बड़ा घोटाला। और हमारी कांग्रेस सरकार बड़े प्यार से अपने इन प्यारे सपूतों से इस्तीफे मांग लेती है और कहती है कि उन्हें मेरा पूरा-पूरा ख्याल है, इसलिए वो भ्रष्ट्र नेताओं से मुझे छुटकारा दिला रही है।
अब कोई उनसे पूछे कि जब ये घोटाले होते हैं तब उसे मेरा ख्याल क्यों नहीं आता, तब उसका प्यार कहां चला जाता है? वो इन सारे नेताओं से इस्तीफे क्यों मांगती है अगर उसे मेरा वाकई ख्याल है तो वो उनसे उन पैसों का हिसाब क्यों नहीं मांगती है जो मेरी गाढ़ी कमाई का हिस्सा है।
2g स्पैक्ट्रम घोटाले से उजागर हुए राजा कल तक यही चिल्लाते रहे कि कुछ भी हो जाये इस्तीफा नहीं दूंगा, फिर अचानक उनका इस्तीफा सामने आ गया क्योंकि शायद उनसे यही कहा गया कि सिर्फ इस्तीफा ही तो मांग रहे हैं, पैसे तो नहीं मांग रहे, हिसाब तो नहीं मांग रहे, औऱ राजा साहब मुस्कुराते हुए बोले ठीक है 'करूणानिधि जी दे देता हूँ मैं इस्तीफा, जैसा आप कहें' और भाई साहब मंत्रालय को बॉय-बॉय कहते हुए निकल गये।
क्यों मैने कुछ गलत कहा क्या? यही तो हुआ है, सदियों से यही होता आया और आगे भी यही होता रहेगा, खुदा और इतिहास गवाह है, जब भी कोई घोटाला होता है, विपक्ष चिल्लाता है, सत्ता पक्ष सफाई देती है, जब उससे काम नहीं चलता है तो इस्तीफे ले लेती है, कभी-कभी कमेटी बन जाती है, जांच कमेटी बैठती है, जब ज्यादा शोर मचता है तो रिपोर्ट जल्दी आ जाती है।
लेकिन कभी नहीं होता कि पैसों का हिसाब हो, कभी किसी नेता की पॉकेट से पैसे नहीं लिये जाते हैं जबकि सबको पता है कि इन भ्रष्ट्र नेताओं ने ही बिना डकार के मेरे पैसे खाये है, सरकार अपने इन फर्जी नुमाइदों को उनकी पोस्ट से हटाकर चिल्लाती है कि उसे मेरा ख्याल आ गया है लेकिन क्या उसके कोरे वादों से मेरे वो पैसे वापस आ जायेंगे जो मेरे बच्चों के निवाले से काट कर उसके नुमांइदों की तिजोरियां भरते आयें हैं।
अब आप को बड़ी उत्सुकता हो रही होगी कि मैं कौन हूँ। तो जनाब मैं आप ही का दोस्त, भाई या बहन जो कह लो वो हूँ, मेरा नाम आम आदमी है, जो 24 घंटे में से 14 घंटे अपना पसीना बहाकर कुछ पैसे जुटाता है, ताकि उसका परिवार की जीविका अच्छे से चले, उसी जी-तोड़ पसीने की कमाई से कमाये कुछ पैसे सरकार के नाम पर आंख बंद कर के दे देता हुँ, ताकि सरकार हमारा ख्याल रखेगी लेकिन सरकार बहुत ज्यादा मेहरबान होकर मुझे घोटालों का तोहफा दे देती है जिसके तकाजे पर हमें मिलते हैं चव्हाण, कलमाड़ी और राजा के इस्तीफे।
जिनसे केवल सरकार खुश और विपक्ष शांत हो जाता है लेकिन मेरा क्या जो सत्ता के भरे चौराहे पर लुट चुका है और पूरी तरह से राजनीति का कोपभाजन बन चुका है, अब आप बताइये की क्या इस्तीफों की तथाकथित मलहम से मेरा दर्द कम हो सकता है?
दोस्ती वो शब्द जो सिर्फ और सिर्फ चेहरे पर मुस्कान लाती है, दोस्ती वो है जो हर रिश्ते से बड़ी होती है, क्यों सही कहा ना.... दोस्तो, 1अगस्त यानी 'फ्रेंडशिप डे' आ गया है । वैसे तो दोस्ती का कोई दिन नहीं होता क्योंकि ये तो ऐसी खुशी है जो हर दिन हर पल सेलिब्रेट होती है। लेकिन दुनिया है न ..हर दिन को किसी रन किसी रूप में रिश्तों से जोड़ देती है इसलिए उसने 'फ्रेंडशिप डे' को भी बना दिया। दोस्ती में बिना शब्दों के अभिव्यक्तियों से ही बहुत कुछ कहा जाता हैं। हर रिश्ते से बड़ी 'दोस्ती'
दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है जो मामूली घटनाओं और यादों को भी खास बना देता है। हमारे जेहन में ऐसे बहुत से पलों को ताउम्र के लिए कैद कर देता है। जो वापिस तो कभी नहीं आते पर हाँ जब भी आप अपने पुराने दोस्तों से मिलते हैं तो अब उन बातों को याद कर जरूर हँसते होंगे। बेशक आज की 'बिजी लाइफ' के चलते दोस्त रोज मिल नहीं पाते लेकिन दिल से दूर नहीं होते हैं, उनकी रूह, उनकी सांसो में दोस्ती हमेशा साथ होती है।
दोस्ती के लिए कोई दिन तय कर उसे फ्रेंडशिप डे का नाम दे देना कितना सही है यह कहना थोड़ा मुश्किल है। पर इतना जरूर है कि जिस दिन पुराने यार सब मिल बैठ जाएँ उनके लिए वही फ्रेंडशिप डे हो जाता है। दोस्ती को सीमाओं में बांधना बेवहकूफी होती है। किसी जवां लड़के या यंग लड़की के दोस्त साठ साल के बूढ़े भी हो सकते हैं।
दोस्ती आईना है सही-गलत का एक मां भी अपने बेटे की और एक पिता भी अपनी बेटी के अच्छे दोस्त हो सकते हैं। क्योंकि दोस्त वो बातें बताता है जो किसी क्लास या कोर्स में नहीं पढ़ाई जाती हैं। एक लड़का और एक लड़की जो अपने जीवन के भावी सपनों में खोए होते हैं वो भी अपने हर रिश्ते में पहले एक दोस्त खोजते हैं जानते हैं क्यों? क्योंकि यही वो आईना है जो सच और झूठ का अंतर बताता है।
लेकिन अफसोस इस खूबसूरत रिश्ते और खूबसूरत दिन को देश के कुछ ऐसे लोग जो अपने आप को बेहद ही समझदार समझते हैं, अपने आप को समाज का ठेकेदार कहते हैं,को ये दिन पाश्चात्य सभ्यता का दुष्प्रभाव लगता है। उनका मानना है इससे हमारे युवा भटक रहे हैं, अब ये उन्हें कौन बताये कि भले ही फ्रेंडशिप डे पाश्चात्य सभ्यता की देन है, लेकिन फ्रेंडशिप तो हमारे देश की मिट्टी में हैं। भगवान श्रीकृष्ण-सुदामा की दोस्ती के आगे क्या कोई और मिसाल है, नहीं ना..तो फिऱ इस दिन के लिए हाय तौबा क्यों?..... दोस्ती पर हाय-तौबा क्यों?
हां अगर उन्हें इस दिन के मनाये जाने के ढंग से एतराज हो तो बेशक उसे दूर करें लेकिन इस दिन को कोस कर, विरोध करके इसकी गरिमा को नष्ट करने का उन्हें कोई अधिकार नहीं हैं।
फिलहाल मेरा तो यही कहना है अपने साथियों से कि वो इस दिन का महत्व समझे, अपने सच्चे मित्रों को पहचाने और इस दिन को बेहद इंज्वाय करे , न जाने ये पल कल नसीब हो न हो। मेरी ओर से भी अपने सभी साथियों को 'हैप्पी फ्रेंडशिप डे'।
अपनों को करीब लाता है 'सावन' जिससेसाबितहोताहैकिसावनएकनईशुरुआतकामहीनाहै।खेतोंसे, सामाजिकताकेस्तरपर।नईशुरुआतहोतीहैइसीमाह! जेठकीलूमेंतपतीमरूधरासावनकीबदलीसेमानोंनयाजीवनलेतीहै।बाजरी, ज्वार, ग्वारी, नरमा, कपास, मूंगफलीऔरमोठआदिखरीफफसलोंकीबुवाईइसीमहीनेकेबादशुरूहोतीहै।इसीलिएतोखरीफकोसावणीकहाजाताहै?
जिसतरहसावनमेंप्रकृतिश्रृंगाररचतीहैऔरउसीतरहइसमहीनेमेंमहिलाएंऔरयुवतियांभीतैयारहोतीहै।इसलिएतोसावनकोनारीकामहीनाकहाजाताहै।स्त्रियाँहरेपरिधानऔरहरीचूड़ियाँपहनतीहैं।क्योंकिहरारंगसमृद्धिकाप्रतीकहै।शादीकेबादपहलासावनमायकेमेंबितानेआईयुवतियोंसेसखियोंकीचुहल॥किसीखेजड़ी, कीकरयारोहिड़ेकेनीचेझूलाझूलतीबच्चियोंकीउम्मीदेंइन्हीसबकातोप्रतीकहैसावन।सोलहश्रृंगारकरकेअपनोंकाइंतजारकरतेहुएअपनोंकोऔरपासलेआताहै ...येसावन... तभीतोरचनाकारदेवमणिपाण्डेयनेकहाहै बरसे बदरिया सावन की रुत है सखी मनभावन की बालों में सज गया फूलों का गजरा नैनों से झांक रहा प्रीतभरा कजरा राह तकूं मैं पिया आवन की बरसे बदरिया सावन की
चमके बिजुरिया मोरी निंदिया उड़ाए याद पिया की मोहे पल पल आए मैं तो दीवानी हुई साजन की बरसे बदरिया सावन की.....
आजकल बैंगलौर में मानसून ने मौसम को बेहद दिलकश बना दिया है, रिमझिम फुहारों ने मौसम के मिजाज में शरारत और प्यार की रंगत भर दी है। बारिश की बूंदो ने सख्त से सख्त दिल को भी झूमने पर मजबूर कर दिया है, प्रकृति ने अपने आँचल से बैंगलोर की वादियो को और भी लुभावना बना दियाहै। ऐसे ही सुंदर दृश्यों को नजारा आप भी करे और रूमानी हो जाए। परमपिता परमेश्वर ने कितनी हसीन और शानदार दुनिया बनाईं है। मुझे तो हैरत होती है ऐसे लोगो से जो दुनिया को कोसते रहते है, कमियां निकालते रहते है और दुखी रहते है और आसपास के वातावरण को भी बोझिल करते हैं। उनके दुनिया को देखने का तरीका ही ग़लत होता है।.....
ईश्वर ने जो धरोहर हमको सौपी है उसमे बचाए रखने मे प्रकृति प्रेमी ही मददगार होते है, विनाश और विध्वंस के पैरोकार क्या जाने प्रेम और सद्भाव की बातें। प्रकृति तो अपना काम तो बखूबी कर रही है पर हम कहने को तो अपने को बड़ा ही उदारवादी, समझदार, प्रेमी और संवेदनशील मानते हैं पर दरअसल हम है नही ऐसे। किसी अपरिचित से बात करना तो दूर हम उसे एक मुस्कराहट तक नही दे पाते हैं जिसमे हमारा कुछ खर्च नही होता है। हमे अनजाना डर समाया रहता है की न जाने बात करने से या मुस्कुरा देने से वह हमारा नुकसान न कर दे या उसकी हमे कोई मदद न करनी पड़ जाए।....
मेरा यह अनुभव रहा है जब हम किसी से निश्छलता से भावनाओं का आदान प्रदान करते है तो हमे भी उसी प्रकार का व्यवहार मिलता है। इस हिचक के कारण हमने बहुत छोटी छोटी खुशिया खो दी है । क्या हम इस रूमानी और सकारात्मक मन की बात को मानने के लिए तैयार है जैसा हम अक्सर मन ही मन मे कल्पना भी करते हैं और जागती आंखों से एक ख्वाबगाह भी लेते है अपनी कल्पनाओं का, अपनी रूमानियत का, अपने समर्पण का, अपने को निछावर कर देने का। किसी शायर की चंद लाइने शायद मेरे जज्बात को आप तक पहुचाने मदद करें.... क्यों पुतलों सी भरी इस दुनिया मेंमिलते नहीं कोई हमसफ़र हमखयालकागज़ के रिश्ते-रिवाजों से अलगमुझको एक नयी जिंदगानी दे दो...सबसे अलग कोने में पड़े हुएघुटती साँसों को कपड़े में लपेटइस बीते दिन को कल का सूरज मिल जाए, इतना अब रूमानी दे दो ....
इतनी सारी मेरे मन की बातों को लिखकर मैंने तो अपना ध्येय प्रकट कर ही दिया है, अब बारी है आपकी......
आखिरमौतसेक्याऐसेबच्चोंकेमां-बापकेदिलोंकोसकूनमिलजाताहै।बेटे-बेटियोंकोमौतकेघाटउतारनेकेबादघरवालोंकोकोर्ट-कचहरीकरनामंजूरहोताहैलेकिनअपनेबच्चोंकीखुशीमंजूरनहींहोती। आखिर अगरदोबालिगलोगोंनेएकसाथजीवनबीतानेकाफैसलाकरलियाहैतोगलतक्याहैलेकिननहींहमारेतथाकथितसमाजकोयेमंजूरनहींहै।हमारेसमाजकेठेकेदारअपनेबच्चोंकीमर्जीयाफैसलेकीशहनाईऔरसिंदूरपरनहींबल्किउनकीहत्यायाऔरखूनकेरंगेअपनेहाथोंपरज्यादाभरोसाकरतेहैंतभीतोमैनेंकहाहैकिहम मर चुके हैं, हम इंसान नहीं है, क्योंकि हमारी संवेदनाएं खत्म हो चुकी है। अब आप फैसला कीजिए क्या मै गलत हूं?
हनी पदाई में बहुत अच्छा है.उसे घर पर किसी टीचर की कोई जरुरत नहीं...लेकिन उसकी मम्मी ने जिद कर के उसके लिए घर पर टीचर का इंतजाम किया है... दलील ऐसी की आप भी सुने तो हैरान रह जाएँ...हनी की मम्मी का कहना है कि ....हनी के पापा ऊँची पोस्ट परहैं...अच्छा-खासा कमाते हैं... आखिर लोग सुनेगें तो क्या कहेंगे यहीना...किक्या करेंगे इतने पैसे का..जबअपने बच्चे को ट्यूशन ही नहीं लगवा सकते.......
ऐसा ही कुछ हमारे घर के बगल रहने वाले खन्ना साहब का हाल हैं...जनाब ने नया मकान ख़रीदा है...बेडरूम काआकार ठीक -ठाक था...लेकिन जनाब अपनी हेकड़ी में खरीद लाये किंग साइज़ बेड..क्योकिं उनके जूनियर के घरपर किंग साइज़ बेड था ..... यह बात औरहैं कि अब उनके बेडरूम में चलना -फिरना भी दूभर हैं...पूछने पर जवाब वो ही एक कि आखिर लोग क्या कहते .....किइनकेपासअपनेजूनियरसेघटियासामानहै
लेकिन इन सब में बाजी मारी श्रीमती खरे ने...जिन्होंने हाल ही में अपनी बेटी की शादी की है... लड़का विदेश में हैं ..उनकी बेटी को भी शादी के बाद वही जाना था....लड़कीकेससुरालवालों का साफ़ कहना था कि ..लड़की को शादी में केवल जरुरत भरका सामान दिया जाये..कपड़ो पर ज्यादा पैसा खर्चा न किया जाये। लेकिन मिसेजखरे .. कहाँ मानने वाली थी..ले आयीं बाज़ार से २१ साड़ियाँ .....क्योंकि उनकी ननंद ने अपनी बेटी को इतनी ही साड़ियाँ उसकी शादी में दी थी..तो भला लोग भाभी का नंनद के सामने मजाक नहीं उड़ाते ...लोग कुछ न कहें .इसलिए मिसेज खरे ने फालतू में लाखोंका खर्चा कर डाला...यह बात और हैं कि उनकी बेटी एक भी साड़ी अपने साथ ले नहीं गयी ....लेकिन हाँ लोगों कि जुबान खामोश हैं...और लोग कुछ नहीं कहरहेंहैं...ऐसाउनका यानी श्रीमती खरे का माननाहैं ....