Tuesday, July 27, 2010

आया सावन झूम के.....

बदरा छाये कि झूले पड़ गये हाय...कि आया सावन झूम के...जीं हां दोस्तों बीते जमाने की फिल्म आया सावन झूम के...का ये गीत आज भी उतना ही जवां है , जितना की कल था..क्योंकि बात सावन की है....सावन होता है मस्ती भरा, फुहारों भरा, हंसता हुआ और गुदगुदाता हुआ। कवियों और लेखकों ने तो सावनकी तुलना प्रकृति से कर रखी है, सावन को रचना कारों ने वसुंघरा का आंचलकह डाला है।

और शायद ये गलत भी नहीं है क्योंकि सावन में प्रकृति भी अपना मुरझाया और कुम्लाहा चेहरा फेंक कर बारिशकी बूंदो में नहाकर अपने आपको बेहद ही मन मोहक अंदाज में हरियाली चूनर से खुद को सजा लेती है। चारों औरकेवल हरियाली ही हरियाली नजर आती है। नए नए पौधे, नई नई कोंपले, कच्ची कच्ची नजर आती हैं। जेठ की जोतपस और रुखापन था वह दूर हो जाती है। नमी दिखती है, नरमी दिखती है और जीवन को स्पंदन देने वालीखुशहाली दिखती है।

अपनों को करीब लाता है 'सावन'
जिससे साबित होता है कि सावन एक नई शुरुआत का महीना है। खेतों से, सामाजिकता के स्तर पर। नई शुरुआतहोती है इसी माह! जेठ की लू में तपती मरूधरा सावन की बदली से मानों नया जीवन लेती है। बाजरी, ज्वार, ग्वारी, नरमा, कपास, मूंगफली और मोठ आदि खरीफ फसलों की बुवाई इसी महीने के बाद शुरू होती है। इसीलिए तोखरीफ को सावणी कहा जाता है?

जिस तरह सावन में प्रकृति श्रृंगार रचती है और उसी तरह इस महीने में महिलाएं और युवतियां भी तैयार होती है इसलिए तो सावन को नारी का महीना कहा जाता है। स्त्रियाँ हरे परिधान और हरी चूड़ियाँ पहनती हैं। क्योंकि हरारंग समृद्धि का प्रतीक है। शादी के बाद पहला सावन मायके में बिताने आई युवतियों से सखियों की चुहल॥ किसीखेजड़ी, कीकर या रोहिड़े के नीचे झूला झूलती बच्चियों की उम्मीदें इन्ही सब का तो प्रतीक है सावन सोलह श्रृंगारकरके अपनों का इंतजार करते हुए अपनों को और पास ले आता है ...ये सावन... तभी तो रचनाकार देवमणिपाण्डेय ने कहा है
बरसे बदरिया सावन की
रुत है सखी मनभावन की
बालों में सज गया फूलों का गजरा
नैनों से झांक रहा प्रीतभरा कजरा
राह तकूं मैं पिया आवन की
बरसे बदरिया सावन की

चमके बिजुरिया मोरी निंदिया उड़ाए
याद पिया की मोहे पल पल आए
मैं तो दीवानी हुई साजन की
बरसे बदरिया सावन की.....
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