'मां 'का नाम लेते ही दिल दिमाग पर जो तस्वीर सामने आती है उसके आगेसिर खुद ब खुद नतमस्तक हो जाता है। वक्त बदला है हमारे आस पास की हरचीज में बदलाव है क्योंकि ये ही समय की मांग है। क्योंकि आज जमाना आगेबढ़ने का है, जो इस बदलते वक्त के साथ आगे नहीं बढ़ेगा वो थम जायेगा, उसकी प्रगति रूक जायेगी।
जाहिर है जब हमारे पास की हर चीज नये रूप में है तो हमारी मां के रूप में भी बदलाव होना स्वाभाविक ही है। जरागौर फरमाइये आज से करीब बीस साल पहले आयी फिल्म 'दीवार' का वो डॉयलॉग जिसमें शशि कपूर अपने बड़ेभाई अमिताभ को ये कहकर चुप करा देते हैं कि उनके पास मां हैं और उसकी कीमत नहीं लगायी जा सकती हैं।
तब से आज तक ढेरों हिन्दी फिल्मों में मां को कई रूपों में पेश किया गया है, कभी वो लोरियों के रूप में ममता कीमूरत बन कर सामने आती है तो कभी अपने बच्चों को सबक सीखाने के लिए हथियार उठाती है। 'वास्तव' और 'मदर इंडिया' जैसी फिल्में इसकी साक्ष्य हैं। जिनके आगे पूरा सिनेमा जगत आज भी सजदा करता है। 'करन अर्जुन' की मां हो या 'सोल्जर' की मां दोनों ही फिल्में मां की एक नई परिभाषा गढ़तीं हैं। इस परिभाषा में हमेंत्याग, समर्पण और प्यार का अनूठा मेल देखने को मिलता है।
ये तो बड़े पर्दे की बातें हैं अब थोड़ा छोटे पर्दे की ओर चलते हैं, जहां इन दिनों डेली सोप की बाढ़ आयी हुई हैं। कोई भीचैनल खोलिए जहां सीरियल चल रहे हों वहां आपको एक नई मां देखने को मिलेगी। चाहे वो स्टार प्लस का 'बिदाई ' धारावाहिक हो या फिर इमेजिन का 'ज्योती' या 'दो हंसो का जोड़ा'। हर सीरियल मां को एक नये रूप में पेशकरता है। इन कहानियों में आपको कहीं मां आदर्श रिश्तों की दुहाई देती दिखती हैं तो कहीं छल-कपट की सारी हदोंको पार करते भी दिखतीं हैं।
ये तो किस्से कहानियों की बातें हैं अब जरा एड जगत का जिक्र करते हैं जो मां के हाथों हर चीज बिकवा देता है।पारंपरिक मां की सबसे ज्यादा मनपसंद जगह घर की रसोई होती हैं इस लिए विज्ञापन जगत ने वहीं से शुरूआतकरना उचित समझा। विज्ञापन वालों ने मसाले, अचार, पापड़, तेल, सर्फ ये सभी कुछ मां के हाथों से जमकरबिकवाया ही साथ ही वहीं मां के हाथों शैंपू, टूथपेस्ट, कपड़े, मोबाइल फोनों की भी जमकर बिक्री करवाई। क्योंकिमां तो कभी झूठ नहीं बोलती इसलिए लोगों ने जमकर इन चीजों की खरीददारी की। चाहे इंश्योरेंस पॉलिसी हो याबच्चों की डाइपर हर जगह मां सटिक बैठती हैं ।
मां की पब्लिसिटी का आलम ये है कि आज की फिल्मी अभिनेत्रियां भी विज्ञापन में मां बनने से परहेज नहीं करतीहैं। चाहे वो हरदिल अजीज 'काजोल' हों जो ये कहते सुनी जाती हैं कि 'मां बनते ही कितना कुछ बदल जाता है जैसेआपका फेवरिट टीवी चैनल' या चुलवुली 'जूही' का 'कुरकुरे' का एड जो कहती हैं पंजाबी कुरकुरे में मां और पंजाबकी मिट्टी की खुशबू है। कारण सिर्फ एक है और वो ये कि मां कभी झूठ नहीं बोलती वो ईमानदार होती है इसी बातको विज्ञापन जगत ने खूब कैश कराया है और आज भी बदस्तूर कराता जा रहा है।
ये पूरी बातें ये साबित करती हैं कि मां सर्वोपरी है उसकी बराबरी कोई नहीं कर सकता है। क्योंकि मां -बच्चे सेबढ़कर कोई रिश्ता नहीं है, क्योंकि मां स्वार्थी नहीं होती। वो न तो काली होती हैं और न गोरी वो तो बस मां होती है।चाहे दुनिया कितनी बदल जाये ये रिश्ता कभी नहीं बदल सकता है, क्योंकि मां की ममता कभी नहीं बदलती। मदर्स डे के शुभ मौके पर दुनिया की समस्त मांओ को शत शत प्रणाम ....
Saturday, May 8, 2010
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हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है। सार्थक एवं सफल ब्लॉगिंग के लिए शुभकामनाएं...
ReplyDeleteकृपया दूसरे ब्लॉग भी देखें और प्रतिक्रिया दें...
इस भावपूर्ण लेख के लिए बहुत बधाई.
ReplyDeleteअब तुमसे नियमित बात होती रहेगी .
http://manjulmanoj.blogspot.com/
यह मेरे ब्लॉग का URL है.
good hai .....mumma yaad aa gayi....congratulations for this lovely blog.....
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