Sunday, June 19, 2011

फादर्स डे पर विशेष : पिता बिना अस्तित्व अधूरा...

कहते हैं मां के चरणों में स्वर्ग होता है, मां बिना जीवन अधूरा है लेकिन अगर मां जीवन की सच्चाई है तो पिता जीवन का आधार, मां बिना जीवन अधूरा है तो पिता बिना अस्तित्व अधूरा। जीवन तो मां से मिल जाता है लेकिन जीवन के थपेड़ो से निपटना तो पिताजी से ही आता है, जिंदगी की सच्चाई के धरातल पर जब बच्चा चलना शुरू करता है तो उसके कदम कहां पड़े और कहां नहीं.. ये समझाने का काम पिता ही करते हैं।

समाज की बंदिशो से अपने बच्चे को निकालने का काम एक पिता ही कर सकता है। पिता अगर पास है तो किसी बच्चे को असुरक्षा नहीं होती है। पिता एक वट वृक्ष है जिसके पास खड़े होकर बड़ी से बड़ी परेशानी छोटी हो जाती है। वक्त आने पर वो दोस्त बन जाते है तभी तो हर लड़की अपने जीवन साथी में अपने पिता का अक्स खोजती है।

जिस तरह उसके पिता उसके पास जब होते हैं तो उसे भरोसा होता है कि कोई भी नापाक इरादे उसे छू नहीं सकते हैं। उसे अपनी सुरक्षा और ना टूटने वाले भरोसे पर गर्व होता है इसलिए वो जब भी अपने साथी के बारे में सोचती है तो उसकी कल्पनाओं में उसके पिता जैसी ही कोई छवि विद्दमान होती है।

जबकि हर बेटे की ख्वाहिश होती है कि वो ऐसा कुछ करे जिससे उसके पिता का सीना चौड़ा हो जाये। उनकी मुस्कुराहट और आंखो की चमक सिर्फ और सिर्फ अपने पिता के लिए होती है। उसकी पहली कामयाबी तब तक अधूरी होती है जब तक उसके पिता आकर उसकी पीठ नहीं थपथपाते हैं।

अक्सर बाप-बेटे एक -दूसरे से भावनाओं का आदान-प्रदान नहीं करते हैं लेकिन सबको पता है कि दोनों ही के दिल में प्रेम का अनुपम समंदर विद्दमान होता है। कभी उस पिता की आंखो में झांकने की कोशिश कीजिये जब उसका बेटा उसके सामने अपनी पहली कमाई लेकर आता है। इसलिए तो कहते है कि पिता का कर्ज आप तब ही चुका सकते है जब आप अपने जैसे ही किसी नन्हे प्राणि को धरती पर लाते हैं।

इसलिए तो कवि गिरिराज जोशी ने कहा है..

पापा!
मुझे लगता था,
'मां' ने मुझे आपार स्नेह दिया,
आपने कुछ भी नहीं,
आप मुझसे प्यार नहीं करते थे।

मगर पापा!
आज जब जीवन की,
हर छोटी-बड़ी बाधाओं को,
आपके 'वे लम्बे-लम्बे भाषण' हल कर देते है,
मैं प्यार की गहराई जान जाता हूँ....

तो चलिए देर किस बात की है ..जाइये अपने पिता के पास और पैर छूकर अपने आप को धन्य कीजिये और जीवन की सच्चाई से रूबरू कराने के लिए उन्हें तहे दिल से धन्यवाद दीजिये। हैप्पी फादर्स डे....

Sunday, May 8, 2011


मां..ये शब्द अपने आप में संपूर्ण हैं.. कहते हैं ना..कोई नारी तभी पूरी होती है जब वो मां बनती हैं। मां जिसके बिना हर कोई अधूरा है, बच्चा जब पैदा होता है, आखें भी नहीं खोलता है, तब से लेकर जिंदगी की अंतिम सांस तक केवल मां ही होती है जो बच्चे को समझती है। तभी तो मां का कहना कोई टाल नहीं सकता है, फिल्मों से लेकर विज्ञापन तक हर जगह मां सक्सेसफूल है, हां वक्त बदला है आज की मां मार्डन हो चुकी है लेकिन उसकी महानता और मर्यादा दोनों अपनी जगह आज भी कायम हैं।

आधुनिकता का असर चारों ओर दिखता है, टीवी पर कल की साड़ी के पल्लू में मुंह छुपाती मां आज जींस में दिखती हैं लेकिन उनकी भावनाओं में आज भी कोई फर्क नहीं है, आज भी उसका पेट तब ही भरता है जब उसके बच्चे खाना खा चुके होते हैं, उसकी आंखो की नींद तभी पूरी होती है, जब उसके बच्चे सो जाते है, वो तभी खुश होती है जब उसके बच्चे मुस्कुराते हैं और उसकी आंखे तब ही नम होती है जब उसके बच्चे दुखी होते है। जिंदगी आज भाग रही है लोगो के पास अपने लिए ही समय नहीं है, हर चीज का विकल्प मार्केट में उपस्थित है, लेकिन शायद मां का कोई विकल्प हो ही नहीं सकता।

आज युवा पीढ़ी तरक्की के लिए अपने मां-बाप से दूर हो जाती है, मीलों दूर वो अपनों को छोड़कर चले आते हैं लेकिन जब थक कर बिस्तर पर पहुंचते हैं तो मां का ही सहलाना उन्हें याद आता है, बाजार के खाने में मां का ही खाना खोजते हैं यहां तक अगर गलती से कुछ अच्छा मिल जाता है तो उनके मुंह से यही निकलता है ये तो मां के खाने जैसा है, कहने का मतलब ये ही कि हर चीज मां जैसी हो सकती है पर वो मां नहीं हो सकती।

8 मई को मां का दिवस है, आज तो मीडिया तंत्र इतना प्रबल है कि मार्केट में मां के गिफ्ट के नाम पर बहुत कुछ उपलब्द्ध है, कई जगह तो बहुत सारे ऑफर भी दिये जा रहे हैं, टीवी पर सेलिब्रेटीज को दिखाया जा रहा है कि वो इस दिन अपनी मां को क्या गिफ्ट दे रहे हैं, सभी जानते हैं कि मां के लिए हर बच्चा कुछ करना चाहता है, इसी का फायदा हमारे मार्केट वाले भी उठा रहे हैं।

लेकिन आपको बता दें शायद दुनिया में मां ही ऐसी है जिसे बदले में कुछ नहीं चाहिए होता है, उसका प्यार निस्वार्थ होता है, तभी तो हर लड़का अपनी बीवी में अपनी मां को खोजता है, उसी तरह का समपर्ण और प्यार की तलाश करता है जो उसे उसकी मां से मिलता है। तो दोस्तों देर किस बात की है, अगर आप अपनी मां के पास है तो तुरंत उनके पास जाईये और अगर नहीं हैं तो तुरंत फोन पर नंबर घूमाइये और बोलिये ..

मां तुम ने मुझे ये जीवन दिया इसके लिए मैं बहुत शुक्रगुजार हूं, इसके बदले में मैं तु्म्हें कुछ नहीं दे सकता हूं लेकिन इतना वादा करता हूं कि तुम्हारे साथ जिंदगी का हर लम्हा जीऊंगा, तुम्हारे बुढ़ापे में तुम्हारी लाठी बनूंगा, आज का दिन भले ही तुम्हारा हो लेकिन गिफ्ट मैं तुमसे मांग रहा हूं कि तुम हमेशा मेरे साथ रहना, मुझे गलत-सही का रास्ता हमेशा तुम ही बताना, ताकि मैं जिंदगी की हर जंग जीत सकूं...आई लव यू मां... आई कांट लीव विदाउट यू...हैप्पी मदर्स डे।

Monday, February 14, 2011

वेलेंटाइन डे स्पेशल: इस दर्द में मजा है...


प्यार एक खूबसूरत एहसास है, बेहतर यही है कि इसे सिर्फ आप रूह से महसूस करें, तभी आप प्यार का आनंद ले पायेंगे। अक्सर ये शब्द आपको कहानियों में सुनने को मिलते है। किसी के लिए ये शब्द बेहद खास होते है तो किसी के लिए कोई मायने नहीं रखते है इसलिए तो आपको आप ही के समाज में देवदास भी मिलते है जो अपने प्यार को खो देने की वजह से अपनी जिंदगी बर्बाद कर लेते है। और इसी समाज में हमें अपने प्यार को जीतने वाले लोग भी दिखायी देते है, भले ही समाज उसे स्वीकारे या नही।

खैर हम यहां ये जिक्र नहीं करेंगे कि क्या सही है और क्या गलत क्योंकि ये ऐसी बहस है जो किसी द्रोपदी की साड़ी से कम नहीं है, जितना बढ़ाओगे बढ़ती है चली जायेगी। आज हम यहां जिक्र करते है उन प्रेमी जोड़ियों की जो प्यार की नई ईबादत लिख गये लेकिन कभी एक नहीं हो पाये। रोमियो-जूलियट से लेकर राधा-कृष्ण तक... हर किसी का प्यार पाक और निर्मल है लेकिन अफसोस ये कभी एक नहीं हो पाया। बात चाहे मीरा की हो या फिऱ शबरी की हर जगह प्यार तो है लेकिन मिलाप नहीं।

आज पूरी दुनिया वेलेंटाइन डे मना रही है , हर तरफ प्यार की बयार है लेकिन अगर इस डे की सच्चाई के बारे में जानेंगे तो पायेगे कि आज का दिन भी किसी के मौत का दिन है जिसे दुनिया ने एक सेलिब्रेशन का डे बना दिया है। क्या करें सोसायटी ही ऐसी है जिसे लोगों के दर्द में मजा आता है। ये बेरहम समाज प्रेमी-प्रेमियों की जूदाई का ही आनंद लेता है, शायद इसे उस दर्द में ही मजा आता है। आज दुनिया आकाश में उड़ रही है लेकिन उसके विचार आज भी किसी दखियानुसी दल-दल में दबे हुए हैं। तभी तो आज भी अगर कोई लड़की अपने से अपनी जिदगी का फैसला करती है तो उसे जिंदगी नहीं मौत मिल जाती है। साल 2010 में हुए ऑनर किलिंग की घटनाएं इस बात का जीता-जागता सबूत हैं।

आपको पता है कि साल 2010 में ऑनर किलिंग की सबसे ज्यादा घटना हरियाणा में हुई है। एक प्रतिष्ठित पत्रिका के सर्वे के मुताबिक हरियाणा में बीते साल 300-500 के बीच ऑनर किलिंग की घटनाएं सामने आयी है। घटना में मारी गई लड़कियों का दोष सिर्फ और सिर्फ इतना ही था कि कि उन्होंने अपने से अपना जीवन साथी चुन लिया था। ऐसा नहीं है कि मारी गई लड़कियां अशिक्षित या नाबालिग थी, बल्कि ये वो लड़कियां थी जो सभ्य समाज की परिभाषा गढ़ती है।

दिल्ली की प्रतिष्ठित बिजनेस स्टैन्टर्ड की पत्रकार निरूपमा पाठक इसका साक्षात उदाहरण है। कोडरमा के घर में वो सिर्फ इस लिए मार दी गई क्योंकि वो अपने पिता के खिलाफ अपनी मर्जी से शादी करना चाहती थी। उसका जुर्म सिर्फ इतना था कि उसने प्यार किया था। हर मीडिया चैनल ने इस खबर को खूब प्रसारित किया क्योंकि ये वो ही समाज है जिसे दर्द में मजा आता है।

आज वेलेंटाइन डे है, हर चैनल, अखबार प्रेम के संदेशो से भरे हुए है, हर कोई कह रहा है कि अपने प्यार का इजहार करो, अपने प्यार को अपने पास बुला लो लेकिन यही लोग कल इस बात को प्रसारित करेंगे कि लड़के-लड़की के प्रेम के इजहार पर दोनों को मार दिया गया। अब बताइये कोई कैसे दहशत के साये में प्यार करें। आखिर क्यों कोई नहीं लोगों की सोच में परिवतिन करने की बात करता है, शायद अगर ऐसा हो जाये तो हमारे समाज को कि सी 14 फरवरी की जरूरत ही ना पड़े। लेकिन क्या करे लोगों के लोगों के दर्द में मजा आता है। अब आप ही बताइये क्या आप भी ऐसा ही सोचते हैं...

Friday, November 19, 2010


मुहब्बत एक एहसासों की पावन सी कहानी [^] है, कहीं कबीरा दीवाना था कहीं मीरा दीवानी है, जीं हां दोस्तों वाकई में मुहब्बत एहसासों की ही कहानी है, इस बात को मैंने आज ही समझा है और शायद अगर हकीकत को आंखो से नहीं देखा होता तो यकीं कर पाना मेरे लिए भी मुश्किल होता। अगर आप भी इस रोचक सत्य से वाकिफ होंगे तो मेरी तरह आप भी कुमार विश्वास की लिखी इन लाइनों को यूं ही गुनगुनाने लगेंगे।

जो लोग बैंगलोर में रहते हैं वो जानते हैं कि BTM बस स्टॉप [^] पर सुबह से शाम तक किस तरह लोगों का मेला लगा रहता है, लोगों के पास पैर रखने की भी जगह नहीं होती है, खैर जो बैंगलोर को नहीं जानते हैं उनके लिए मैं बता दू कि बैगलोर जितना आईटी [^] कंपनियों और सदबहार मौसम के लिए मशहूर है उतना ही वो अपनी ट्रैफिक जाम के लिए बदनाम भी जिसमें BTM एरिया पहले नंबर पर आता है। अब तो आप ने इस एरिया की व्यस्तता का अंदाजा लगा ही लिया होगा।

इस व्यस्त इलाके से जब मैं गुजरती हूँ रोजाना तो मुझे एक व्यक्ति जिसकी उम्र लगभग 60- 70 वर्ष के बीच में होगी, बस स्टॉप पर खड़ा दिखायी देता है जो इलेक्ट्रानिक सिटी से आ रही बस का इंतजार करता रहता है, हर बस से उतरने वाले लोगो की ओर वो बहुत उत्सुकता से देखता है, उन्हीं में से एक बस में से एक बूढ़ी महिला जिसकी उम्र महज 55-60 के बीच में होगी, उतरती है, जिसे वो बूढ़ा व्यक्ति हाथ पकड़ कर रोड क्रास करवाता है और जब तक वो दूसरी और चली नहीं जाती है तब तक उसे देखता रहता है, यहां पर एक बात आप को बता दूं कि वो बुजुर्ग महिला नेत्रहीन है और शायद वो फूल बेचने का काम करती है क्योंकि वो जब बस से उतरती है तो उसके हाथ में फूल की डलिया होती है जिसमें कुछ मुरझाये और कुछ ताजे फूल होते हैं। रोज मैं इस तस्वीर को अपनी आंखो से देखा करती थी आज उस सच से मुखातिब होने का मौका मिला।

हुआ यूं कि रोज की तरह मैं आज भी अपने ऑफिस के लिए निकली, बस स्टैंड पर रोज की तरह काफी [^] भीड़ थी। रोजाना की अपेक्षा आज व्यस्तता ज्यादा थी राम जाने कारण क्या था लेकिन सच यही था। किसी तरह बस स्टैंड पर मैं पहुंची तो देखा कि जो बुजुर्ग व्यक्ति जिन्हें मैं रोज देखा करती थी आज मेरे ही बगल में खड़े हैं, चूंकि भीड बहुत ज्यादा थी और उनकी नजर पर उम्र हावी इसलिए उन्होंने दो बार मुझ से ही पूछ लिया कि बेटी क्या जो बस सामने से आ रही है वो इलेक्ट्रानिक सिटी की है, मैने कहां नही अंकल, जब उन्होंने दोबारा मुझ से पूछा तो मैंने बोला अभी नहीं आयी है अगर आती है तो मैं बता दूंगी, उन्होंने मुझे थैंक्स बोला और साथ ही पूछ भी लिया कि आप कहां से है? उनकी बातों से लग रहा था कि वो बहुत बीमार हैं, मैंने उनसे पूछ ही लिया कि क्या आप की तबियत ठीक नहीं है तो उन्होंने बोला कि उन्हे वाइरल फीवर हो गया है, डॉक्टर ने उन्हें बेड रेस्ट करने के लिए बोला है, लेकिन उन्हें किसी की वजह से यहां आना पड़ा।

धीरे-धीरे बातों का सिलसिला चलने लगा कि तभी इलेक्ट्रानिक सिटी की बस आ गई, मैनें बोला अंकल बस आ गई है, तो वो आगे बढ़ गये, करीब 10 मिनट बाद वो वापस आ गये लेकिन इस बार वो काफी परेशान लग रहे थे, मैंने सोचा शायद भीड़ की वजह से हैं, इसलिए पूछ ही लिया कि क्या आपको सीट नहीं मिली, तो उन्होंने बोला नहीं वो नहीं आयी, मैंने पूछा कौन, जवाब मिला वो जिसे मैं रोड क्रास कराता हूँ?
मैने बोला अच्छा वो फूल वाली आंटी तो उन्होंने आश्चर्य से मेरी ओर देखा और बोला क्या तुम उसे जानती हो, मैने बोला नहीं, बस रोज आपके साथ उन्हें देखती हूँ, इसलिए बोल दिया, वैसे उनका नाम क्या है, उन्होंने बोला मैं नहीं जानता, मैंने बोला मतलब तो उन्होंने कहा मैं नहीं जानता कि वो कौन है? कहां से आती है और कहां जाती है? उसे तो मेरी सूरत और आवाज भी नहीं पता क्योंकि वो ना तो वो देख सकती है और ना ही सुन सकती है। आज से 20 साल पहले मुझे इसी बस चौराहे पर रोड क्रास करते समय मिली थी, उसे जो भाषा आती है वो मुझे नहीं आती इसलिए हमारे बीच संवाद भी नहीं होते हैं।

मैं रोज मार्निंग वॉक करने के बाद यहां आता हूँ और उसे रोड क्रास कराता हूं, बस इसके आलावा मेरा कोई काम नहीं है। खैर लगता है कि आज शायद उसकी तबियत ठीक ना हो इसलिए वो नहीं आयी, कोई बात नहीं बेटा तुम अपने ऑफिस जाओं मैं फिर कल मिलूंगा इसी जगह इसी स्टॉप पर। कह कर वो चले गए और मैं सोचती रही कि इस रिश्ते को क्या नाम दूँ, जो सिर्फ एहसासों की कहानी है, यकीन नहीं हो रहा था इस वाकये पर लेकिन शायद आंखो देखी और कानों सुनी ना होती तो मुझे भी ये एक ख्याली वाकया लगता लेकिन यह सच है जिस पर यकीन करना पड़ेगा।

अब आपको इस बात पर यकीन है कि नहीं अपनी प्रतिक्रिया से हमें रूबरू करवाये।

Wednesday, November 17, 2010

मुझे तो लूट लिया मिलकर अशोक-राजा-कलमाड़ी ने .....

पहले चव्हाण, फिर कलमाड़ी और अब ए राजा का इस्तीफा, क्या बात है? क्या कहने , ऐसी सरकार क्या देखी है आपने जो पूरी तरह सरकारी काम [^] करती है , आप समझ ही गये होंगे कि सरकारी काम क्या होता है? पहले लूटों फिर कहो हम सुधारक है जनता की सेवा करने वाले लेकिन हुजूर कोई ये बताये कि मैं कहां जाऊं, मैं तो पूरी तरह बर्बाद हो चुका हूँ। रात-दिन काम करता हूँ तब तो कहीं जाकर पैसे मिलते हैं। गाढ़ी कमाई का कुछ हिस्सा सीधे तौर पर सरकार के खाते में चला जाता है, ताकि सरकार मेरी जरूरतों का ध्यान रखे और सरकार है कि उसे मैं इतने प्यारा हूँ कि बस वो बजा डालती है वो मेरा बैंड।
कभी उसके शागिर्द 'आदर्श घोटाला' करते हैं तो कभी खेल के नाम पर अपनी कोठियां बनवा डालते है। कुछ 'राजा' जैसे महान होते है जो कर डालते हैं देश का सबसे बड़ा घोटाला। और हमारी कांग्रेस [^] सरकार बड़े प्यार से अपने इन प्यारे सपूतों से इस्तीफे मांग लेती है और कहती है कि उन्हें मेरा पूरा-पूरा ख्याल है, इसलिए वो भ्रष्ट्र नेताओं से मुझे छुटकारा दिला रही है।

अब कोई उनसे पूछे कि जब ये घोटाले होते हैं तब उसे मेरा ख्याल क्यों नहीं आता, तब उसका प्यार कहां चला जाता है? वो इन सारे नेताओं से इस्तीफे क्यों मांगती है अगर उसे मेरा वाकई ख्याल है तो वो उनसे उन पैसों का हिसाब क्यों नहीं मांगती है जो मेरी गाढ़ी कमाई का हिस्सा है।

2g स्पैक्ट्रम घोटाले
से उजागर हुए राजा कल तक यही चिल्लाते रहे कि कुछ भी हो जाये इस्तीफा नहीं दूंगा, फिर अचानक उनका इस्तीफा सामने आ गया क्योंकि शायद उनसे यही कहा गया कि सिर्फ इस्तीफा ही तो मांग रहे हैं, पैसे तो नहीं मांग रहे, हिसाब तो नहीं मांग रहे, औऱ राजा साहब मुस्कुराते हुए बोले ठीक है 'करूणानिधि जी दे देता हूँ मैं इस्तीफा, जैसा आप कहें' और भाई साहब मंत्रालय को बॉय-बॉय कहते हुए निकल गये।

क्यों मैने कुछ गलत कहा क्या? यही तो हुआ है, सदियों से यही होता आया और आगे भी यही होता रहेगा, खुदा और इतिहास गवाह है, जब भी कोई घोटाला होता है, विपक्ष चिल्लाता है, सत्ता पक्ष सफाई देती है, जब उससे काम नहीं चलता है तो इस्तीफे ले लेती है, कभी-कभी कमेटी बन जाती है, जांच [^] कमेटी बैठती है, जब ज्यादा शोर मचता है तो रिपोर्ट जल्दी आ जाती है।

लेकिन कभी नहीं होता कि पैसों का हिसाब हो, कभी किसी नेता की पॉकेट से पैसे नहीं लिये जाते हैं जबकि सबको पता है कि इन भ्रष्ट्र नेताओं ने ही बिना डकार के मेरे पैसे खाये है, सरकार अपने इन फर्जी नुमाइदों को उनकी पोस्ट से हटाकर चिल्लाती है कि उसे मेरा ख्याल आ गया है लेकिन क्या उसके कोरे वादों से मेरे वो पैसे वापस आ जायेंगे जो मेरे बच्चों के निवाले से काट कर उसके नुमांइदों की तिजोरियां भरते आयें हैं।

अब आप को बड़ी उत्सुकता हो रही होगी कि मैं कौन हूँ। तो जनाब मैं आप ही का दोस्त, भाई या बहन जो कह लो वो हूँ, मेरा नाम आम आदमी है, जो 24 घंटे में से 14 घंटे अपना पसीना बहाकर कुछ पैसे जुटाता है, ताकि उसका परिवार की जीविका [^] अच्छे से चले, उसी जी-तोड़ पसीने की कमाई से कमाये कुछ पैसे सरकार के नाम पर आंख बंद कर के दे देता हुँ, ताकि सरकार हमारा ख्याल रखेगी लेकिन सरकार बहुत ज्यादा मेहरबान होकर मुझे घोटालों का तोहफा दे देती है जिसके तकाजे पर हमें मिलते हैं चव्हाण, कलमाड़ी और राजा के इस्तीफे।

जिनसे केवल सरकार खुश और विपक्ष शांत हो जाता है लेकिन मेरा क्या जो सत्ता के भरे चौराहे पर लुट चुका है और पूरी तरह से राजनीति का कोपभाजन बन चुका है, अब आप बताइये की क्या इस्तीफों की तथाकथित मलहम से मेरा दर्द कम हो सकता है?

Saturday, August 14, 2010

हम आजाद हैं?

साथियों 15 अगस्त गया है, आजादी का दिन जिसे पाने के लिए जानेकितनी मां की गोद सूनी हो गई थी और जाने कितने बच्चे यतीम। शहीदों के बलिदान की वजह से मिली इस आजादी को हम १५ अगस्त के रूप में मनातेहैं। लेकिन एक सवाल हमेशा हमारे जेहन में आता है कि क्या वास्तव में हमआजाद है, क्योंकि आज भले ही हमारे ऊपर अंग्रेजो की बंदिशे नहीं हैं लेकिन रूढ़िवादी परंपराए आज भी सांस लेने में तकलीफ पैदा करती हैं।

भाई-भाई खून के प्यासे
आज हमारे देश में अंग्रेजों का आतंक नहीं लेकिन दो गज जमीन के लिए दो सगे भाई खून के प्यासे हो जाते हैं।कभी कश्मीर की वादियों में फूटते बमों की आवाज तो कभी मणिपुरवासियों की रोती बिलखती आवाजें। कभीतेलंगाना को लेकर मची हाय-तौबा तो कभी गुजरात, बिहार में जातिवाद झगड़ा क्या ये सब हमें आजादी का एहसास कराते हैं। आज भारत को आजाद हुए 63 साल हो चुके हैं। देश अपना 64 वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है।लेकिन जरा गौर फरमाए इन 63 सालों में देश की बुनियादी जरूरते आज भी वहीं है जो आज से 63 साल पहले हुआकरती थी। यानी की रोटी, कपड़ा और मकान।

महंगाई ने कमर तोड़ दी है

ऐसा नहीं है कि देश में अनाज नहीं है, व्यापार नहीं है, सब कुछ है लेकिन दिशा और गति नहीं है क्योंकि कोईमार्गदर्शक नहीं है। आज करोड़ों का गेंहूं सड़ रहा है, वहीं गेंहूं अगले साल सैकड़ो में बिकेगा, क्योंकि हमारे पासस्टोरेज नहीं है। मतलब ये कि किसानों की मेहनत इस बार भी बेकार क्योंकि उम्मीद से ज्यादा की उपज काखरीददार नहीं है और अगले साल भी बेकार क्योंकि ज्यादा पैसा का अनाज कोई खरीदेगा नहीं। यही नहीं देशनवरात्र में मां दुर्गा की पूजा करता है, लेकिन उसी देश का वासी अपनी बेटी या बहन को मौत के हवाले करते उससमय एक पल भी नहीं सोचता जिस समय उसे पता चलता है कि उसकी बेटी या बहन ने अपनी शादी का फैसला खुद कर लिया है। साल भर में हुए ऑनर किलिंग के उदाहरण आपके सामने हैं।
ऑनर किलिंग बन गया है रिवाज
एक बात और आज लोग 15 अगस्त को छुट्टी दिन समझते हैं क्योंकि इस दिन लोगों को अपने ऑफिस से छुट्टीजो मिल जाती है, इस बार के 15 अगस्त से शायद हमारे कुछ साथी निराश हो सकते है कारण इस बार का 15 अगस्त रविवार को जो है यानी की एक छुट्टी खत्म। बच्चों के लिए 15 अगस्त स्कूलों में एक सांस्कृतिक समारोहका परिचायक बन गया है। उन्हें ये तो पता है कि 15 अगस्त क्यों मनाया जाता है क्योंकि किताबों में इसकीपरिभाषा लिखी होती है, स्कूल के टीचर बच्चों को रटवा कर इस बात को याद करा देते हैं। लेकिन क्या ये बच्चे जोकल के भावी नागरिक है उन्हें एहसास है कि देश के लिए 15 अगस्त किसी पूजा या धर्म से कम नहीं है। नहीं होगाक्योंकि उन्हें बताने वाला कोई नहीं है, आज लोग कामयाबी के पीछे भाग रहे हैं काबिलियत के पीछे नहीं।
15 अगस्त मतलब छुट्टी का दिन
आज देश का बच्चा ये कहता है कि मैं इंजीनियर या डॉक्टर बनूंगा लेकिन कोई नहीं कहता कि मैं सच्चा देशभक्तबनूंगा, सब की इच्छा होती है कि कि भगत सिंह पैदा हों लेकिन हमारे घर में नहीं बल्कि पड़ोसी के घर में। लेकिनदोस्तों हम आजाद है, हां हम आजाद है अपने कर्तव्यों से जो हमारा अपने मां-बाप, अपने शिक्षक, अपने समाजऔर अपने देश के प्रति हैं।

आज देश के युवाओं का मकसद गाड़ी, मोटर, बंग्ला है कि देश को गरीबी, आतंकवाद और अशिक्षा से मु्क्तकराना। आज बापू, नेहरू, शास्त्री, पटेल के इस देश में लोग उत्सव मनाते है लेकिन अपनी शादियों का, अपनेजन्मदिन का, अपनी कामयाबी का, भई मनाये भी क्यों , क्योंकि वो आजाद जो ठहरे, देश की कौन सुनता है वोतो कल भी बेबस था और आज भी बेबस है। अंतर सिर्फ इतना है कि कल उसे गुलामी की जंजीरों ने जकड़ा थाआज उसे अपनों की बेरूखी ने जकड़ रखा है।

Saturday, July 31, 2010

हर रिश्ते से बड़ी 'दोस्ती'

दोस्ती वो शब्द जो सिर्फ और सिर्फ चेहरे पर मुस्कान लाती है, दोस्ती वो है जो हर रिश्ते से बड़ी [^] होती है, क्यों सही कहा ना.... दोस्तो, 1अगस्त यानी 'फ्रेंडशिप डे' आ गया है । वैसे तो दोस्ती का कोई दिन नहीं होता क्योंकि ये तो ऐसी खुशी है जो हर दिन हर पल सेलिब्रेट होती है। लेकिन दुनिया है न ..हर दिन को किसी रन किसी रूप में रिश्तों से जोड़ देती है इसलिए उसने 'फ्रेंडशिप डे' को भी बना दिया। दोस्ती में बिना शब्दों के अभिव्यक्तियों से ही बहुत कुछ कहा जाता हैं।
हर रिश्ते से बड़ी 'दोस्ती'

दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है जो मामूली घटनाओं और यादों को भी खास बना देता है। हमारे जेहन में ऐसे बहुत से पलों को ताउम्र के लिए कैद कर देता है। जो वापिस तो कभी नहीं आते पर हाँ जब भी आप अपने पुराने दोस्तों से मिलते हैं तो अब उन बातों को याद कर जरूर हँसते होंगे। बेशक आज की 'बिजी लाइफ' के चलते दोस्त रोज मिल नहीं पाते लेकिन दिल से दूर नहीं होते हैं, उनकी रूह, उनकी सांसो में दोस्ती हमेशा साथ होती है।

दोस्ती के लिए कोई दिन तय कर उसे फ्रेंडशिप डे का नाम दे देना कितना सही है यह कहना थोड़ा मुश्किल है। पर इतना जरूर है कि जिस दिन पुराने यार सब मिल बैठ जाएँ उनके लिए वही फ्रेंडशिप डे हो जाता है। दोस्ती को सीमाओं में बांधना बेवहकूफी होती है। किसी जवां लड़के या यंग लड़की के दोस्त साठ साल के बूढ़े भी हो सकते हैं।

दोस्ती आईना है सही-गलत का
एक मां भी अपने बेटे की और एक पिता भी अपनी बेटी के अच्छे दोस्त हो सकते हैं। क्योंकि दोस्त वो बातें बताता है जो किसी क्लास या कोर्स में नहीं पढ़ाई जाती हैं। एक लड़का और एक लड़की जो अपने जीवन के भावी सपनों में खोए होते हैं वो भी अपने हर रिश्ते में पहले एक दोस्त खोजते हैं जानते हैं क्यों? क्योंकि यही वो आईना है जो सच और झूठ का अंतर बताता है।

लेकिन अफसोस इस खूबसूरत रिश्ते और खूबसूरत दिन को देश के कुछ ऐसे लोग [^] जो अपने आप को बेहद ही समझदार समझते हैं, अपने आप को समाज का ठेकेदार कहते हैं,को ये दिन पाश्चात्य सभ्यता का दुष्प्रभाव लगता है। उनका मानना है इससे हमारे युवा भटक रहे हैं, अब ये उन्हें कौन बताये कि भले ही फ्रेंडशिप डे पाश्चात्य सभ्यता की देन है, लेकिन फ्रेंडशिप तो हमारे देश की मिट्टी में हैं। भगवान श्रीकृष्ण-सुदामा की दोस्ती के आगे क्या कोई और मिसाल है, नहीं ना..तो फिऱ इस दिन के लिए हाय तौबा क्यों?.....
दोस्ती पर हाय-तौबा क्यों?

हां अगर उन्हें इस दिन के मनाये जाने के ढंग से एतराज हो तो बेशक उसे दूर करें लेकिन इस दिन को कोस कर, विरोध करके इसकी गरिमा को नष्ट करने का उन्हें कोई अधिकार नहीं हैं।

फिलहाल मेरा तो यही कहना है अपने साथियों से कि वो इस दिन का महत्व समझे, अपने सच्चे मित्रों को पहचाने और इस दिन को बेहद इंज्वाय करे , न जाने ये पल कल नसीब हो न हो। मेरी ओर से भी अपने सभी साथियों को 'हैप्पी फ्रेंडशिप डे'।