Wednesday, March 24, 2010

ये चंद सेकंड....



सुबह सवा नौ बजते ही ....बंगलोर का सिल्क बोर्ड चौराहा ......हमेशा की तरह बहुत व्यस्त जाता है ...रोजाना सैकड़ो की संख्या मैं मौजूद लोग अपनी सवारियों के साथ अपनी मंजिलो की तलाश में निकल पड़ते है.....की अचानक चौराहे के ट्रेफिक सिग्नल परलाल बत्ती का इशारा हो जाता है ...और चंद समय के लिए सही ....सारे वाहनों के पहिये थमजाते है.....लेकिन ये चंद सेकंड ही बहुत कुछ कह जाते है......इन्ही चंद सेकंडो में कोई लैपटाप पर अपना प्रोजेक्ट पूराकरता दिखता है ..तो कोई फ़ोन पर अपनी सारी गलतियों की भरपाईकरता दिखता है ...तो कोई इन्ही चंद सेकेंडो मे अपने खोते और रूठेरिश्तों को बचाने और मनाने की कोशिश करता दिखता है.....तो कोईइन्ही चंद सेकेंडो ...में अपने आने वाले वीकेंड का पूरा प्रोग्राम बनातादिखता हैं.....अपने -अपने कामो में व्यस्त लोगों के पास इतना वक़्त नहीं होता की वो ये देखे की उनके बगल कौन खड़ा है.....इन मोटर औरबाइक सवारों के बीच कुछ मासूम परछाइयाँ ...भी दौड़ती भागती दिखतीहैं...जिन्हें आप स्ट्रीट भिखारी या सेलर कहते हैं...जो महज दस से पंद्रहसाल से अधिक के नहीं होते हैं....जो इन्ही चंद सेकंडों में गाड़ी के शीशोंको साफ़ करके अपनी शाम की रोटी का इंतजाम करते दिखते हैं....याछोटे -छोटे घरेलू सामान बेचते हैं....कहीं तो इन्हें पैसे मिल जाते हैं औरकहीं लोगों की बेरुखी से भी इन्हें दो-चार होना पड़ता है....इन्ही चंद सेकंड में ऑटो के अन्दर बैठे स्टुडेंट अपने अधूरे होमवर्क या अपनीप्रॉब्लम को सोल्व करते दिखते हैं...तो यही चंद सेकंड कार मै बैठी महिलाओं के मेकअप का टाइम होता हैं....जो अपना जोग्राफिया ठीककरने की कोशिश करती हैं..क्योंकि अपने बच्चों के चक्कर में इनबेचारियों को मौका ही नहीं मिल पाता है ...अपना हुलिया सही करनेका...इन्ही चंद सेकेंडो में कुछ नौजवान दोस्त सुन्दर कन्याओं को अपनाइंट्रो दे कर के अपनी सेटिंग करने से भी बाज नहीं आते....इन्ही चंद सेकेंडो में कुछ भद्र पुरुष अपने आधिन लोगों को राजनीति और दुनियादारी की सारे पैतरे भी सिखा डालते है...हैं ना....कमाल का यह चंद सेकंड. ये नज़ारा केवल बंगलोर का ही नहीं देश के हर बड़े शहर काहै....ज़िन्दगी आज कितनी फास्ट हो गयी है...इसका अंदाजा लगाना बेहद मुश्किल हो गया है...हम मशीनी युग में जी रहे हैं..या य़ू कहे कि लगभग मशीन हो चुके हैं...लगभग इसलिए कहा कि अभी थोड़ीगुंजाइश बाकी है.. .आदमी का मशीन बनने में.....आज हर कोई भागता ही दिखता हैं....कोई मंजिल की तलाश में दौड़ रहा हैं..तो कोई अपनीमंजिल बचाने के लिए भाग रहा हैं...और कोई इसलिए भाग रहाहै..क्योंकि सब भाग रहे हैं...लेकिन सवाल यह है कि क्या सच में इतनी भाग दौड़ जरुरी हैं... क्योंकि इस दौड़ का कोई अंत नहीं हैं...दिन तो २४घंटे का ही होता है ना.....जिसमें हर वो इंसान जो लगभग मशीन बनचुका है..वो १५ से १८ घंटे काम करता है...जिसके बाद हमे अधिक कहने कि कुछ जरुरत नहीं ..आप खुद हिसाब लगा सकते हैं कि इसके बाद इंसान के पास बचता ही क्या है ..ले दे कर यही चंद सेकंड..अब वो चाहेसालाना लाखों रूपए कमाने वाला पढ़ा लिखा काबिल इंसान हो या..दो जून कि रोटी के लिए चौराहों पर सामान बेचते या भीख मांगते मासूमबच्चे. ..हर कोई जुटा है बस कमाने में....कहीं तो इसके पीछे मज़बूरी है. तो कहीं है.. अधिक पैसे कमाने कि जिद ....कहीं इसके पीछे रातों-रात कुबेर का खजाना पाने की चाहत है तो कहीं पेट भरने कि मजबूरी....आजलोगों कि सोच ये बन गयी है कि अभी तो वक़्त है ...हम मेहनत करसकते हैं ताकि भविष्य को सुरक्षित कर सके...इसीलिए लोग वर्तमान को भूल कर जुटे पड़े है काम करने में...लेकिन कोई इन्ही से पूछे कि अरेभाई.... भविष्य तो तभी बनेगा ...जब आप का आज होगा ..और आज के लिए आप को अपने पर थोडा वक़्त देना होगा.....जो आप के पास है हीनहीं ..ले दे कर बस यही है चंद सेकंड....वो भी किसी ट्रेफिकसिग्नल की मेहरबानी से....खैर...यह तो हुई वो बात जो मैंने आप से कही...अब आपबताइए कि आप अपने आने वाले चंद सेकंड में क्या करने जा रहे...मेरी कही बातों पर हँसने या अपने या अपनों के बारे में सोचने..

3 comments:

  1. मुझे भी चंद सेकंड मिले आपके लेख को पढने में लेकिन इसकी व्यापकता इतनी है की सदियाँ लग जायेंगी आजकल की भागती दौडती जिन्दगी के दर्शन को समझने में
    बधाई आभार

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  2. Per wahi chand seconds jo hum poore din se churaate hai jeete hain... Wo bhi isliye kyunki wo sirf chand seconds hote hai joki hum din bhar ki vyastata se nikalte hain... Agar vyast nahi rahe to wo pal bhi hum jee nahi payenge.... :)

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  3. sahi hai ! aap to bade jabardast observation me lagi hui hain.. Hum jaise non observing log, aise lekh padh kar kaam chala lete hain.. Keep it up..

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