
मुहब्बत एक एहसासों की पावन सी कहानी
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जो लोग बैंगलोर में रहते हैं वो जानते हैं कि BTM बस स्टॉप
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इस व्यस्त इलाके से जब मैं गुजरती हूँ रोजाना तो मुझे एक व्यक्ति जिसकी उम्र लगभग 60- 70 वर्ष के बीच में होगी, बस स्टॉप पर खड़ा दिखायी देता है जो इलेक्ट्रानिक सिटी से आ रही बस का इंतजार करता रहता है, हर बस से उतरने वाले लोगो की ओर वो बहुत उत्सुकता से देखता है, उन्हीं में से एक बस में से एक बूढ़ी महिला जिसकी उम्र महज 55-60 के बीच में होगी, उतरती है, जिसे वो बूढ़ा व्यक्ति हाथ पकड़ कर रोड क्रास करवाता है और जब तक वो दूसरी और चली नहीं जाती है तब तक उसे देखता रहता है, यहां पर एक बात आप को बता दूं कि वो बुजुर्ग महिला नेत्रहीन है और शायद वो फूल बेचने का काम करती है क्योंकि वो जब बस से उतरती है तो उसके हाथ में फूल की डलिया होती है जिसमें कुछ मुरझाये और कुछ ताजे फूल होते हैं। रोज मैं इस तस्वीर को अपनी आंखो से देखा करती थी आज उस सच से मुखातिब होने का मौका मिला।
हुआ यूं कि रोज की तरह मैं आज भी अपने ऑफिस के लिए निकली, बस स्टैंड पर रोज की तरह काफी
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धीरे-धीरे बातों का सिलसिला चलने लगा कि तभी इलेक्ट्रानिक सिटी की बस आ गई, मैनें बोला अंकल बस आ गई है, तो वो आगे बढ़ गये, करीब 10 मिनट बाद वो वापस आ गये लेकिन इस बार वो काफी परेशान लग रहे थे, मैंने सोचा शायद भीड़ की वजह से हैं, इसलिए पूछ ही लिया कि क्या आपको सीट नहीं मिली, तो उन्होंने बोला नहीं वो नहीं आयी, मैंने पूछा कौन, जवाब मिला वो जिसे मैं रोड क्रास कराता हूँ?
मैने बोला अच्छा वो फूल वाली आंटी तो उन्होंने आश्चर्य से मेरी ओर देखा और बोला क्या तुम उसे जानती हो, मैने बोला नहीं, बस रोज आपके साथ उन्हें देखती हूँ, इसलिए बोल दिया, वैसे उनका नाम क्या है, उन्होंने बोला मैं नहीं जानता, मैंने बोला मतलब तो उन्होंने कहा मैं नहीं जानता कि वो कौन है? कहां से आती है और कहां जाती है? उसे तो मेरी सूरत और आवाज भी नहीं पता क्योंकि वो ना तो वो देख सकती है और ना ही सुन सकती है। आज से 20 साल पहले मुझे इसी बस चौराहे पर रोड क्रास करते समय मिली थी, उसे जो भाषा आती है वो मुझे नहीं आती इसलिए हमारे बीच संवाद भी नहीं होते हैं।
मैं रोज मार्निंग वॉक करने के बाद यहां आता हूँ और उसे रोड क्रास कराता हूं, बस इसके आलावा मेरा कोई काम नहीं है। खैर लगता है कि आज शायद उसकी तबियत ठीक ना हो इसलिए वो नहीं आयी, कोई बात नहीं बेटा तुम अपने ऑफिस जाओं मैं फिर कल मिलूंगा इसी जगह इसी स्टॉप पर। कह कर वो चले गए और मैं सोचती रही कि इस रिश्ते को क्या नाम दूँ, जो सिर्फ एहसासों की कहानी है, यकीन नहीं हो रहा था इस वाकये पर लेकिन शायद आंखो देखी और कानों सुनी ना होती तो मुझे भी ये एक ख्याली वाकया लगता लेकिन यह सच है जिस पर यकीन करना पड़ेगा।
अब आपको इस बात पर यकीन है कि नहीं अपनी प्रतिक्रिया से हमें रूबरू करवाये।
अनछुआ ख्याल मार्मिक अद्भुत
ReplyDeleteINH RISHTOKA KOI NAAM NAHE HOTA OR AISE RHISHTE KO PAVITRA RHISHTA MANA JATAHAI...Q YAARO SACH HAI NA?
ReplyDeleteawesome yaar....i am touched...
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