Friday, July 4, 2014

लोगों को 'दीवाना' बनाने वाले ने खुद नहीं देखी 'दीवाना'

कोई ना कोई चाहिए..हम पर मरने वाला...यह गाना आज से 22 साल पहले आयी सुपरहिट फिल्म 'दीवाना' का है। जिसे कि एक ग्रे शर्ट पहने, पतले-दुबले मोटरसाईकिल सवार पर फिल्माया गया था, तब किसी ने नहीं सोचा था कि यह दुबला-पतला, थोड़ा सा हकलाता हुआ और टेढ़ी हंसी वाला लड़का लोगों को इस हद तक 'दीवाना' बना देगा कि लोग उसे देखने के लिए, उसे छूने के लिए, उसके पास आने के लिए पागल हो जायेंगे और वो बॉलीवुड का बादशाह बन जायेगा।

जी हां हम बात कर रहे हैं अभिनेता शाहरूख खान की, जिन्होंने बिना किसी गॉड फादर के बिना अपने दम पर हिंदी सिनेमा में बादशाहत हासिल की। जब दुनिया सोती थी तो वो जागते थे, खुद से बातें करते थे और खुद को ही डांटा करते थे, जिसकी वजह से आज वो किंग खान बन बैठे हैं। लेकिन अजीब बात यह है कि आज 22 साल बाद भी शाहरूख ने अपनी पहली फिल्म 'दीवाना' नहीं देखी है।

खुद इस बात का जिक्र किंग खान ने ट्विटर पर किया है। शाहरूख ने ट्विट किया है कि "मैं पिछले 22 साल से फिल्म जगत में मेहनत कर रहा हूं.. मैंने आज तक 'दीवाना' नहीं देखी, क्योंकि मेरा मानना है कि मैं अपनी पहली और अंतिम फिल्म नहीं देखूंगा। वास्तव में कहानी तो इन दोनों के बीच में ही है।"

मालूम हो कि टेलीविजन पर 'फौजी' और 'सर्कस' जैसी धारावाहिकों से अपने अभिनय करियर की शुरुआत करने वाले किंग खान को साल 1992 में राज कंवर की फिल्म 'दीवाना' में पहला ब्रेक मिला था। फिल्म में वो सेकंड लीड हीरो थे। फिल्म में उनके साथ ऋषि कपूर और दिवंगत अभिनेत्री दिव्या भारती थीं।

फिल्म में उनकी एंट्री इंटरवल के बाद हुई थी लेकिन अपने छोटे से रोल में किंग खान ने ऐसी जान फूंकी कि लोग फिल्म के मेन हीरो ऋषि कपूर को ही भूल गये और शाहरूख के दीवाने बन बैठे। इस फिल्म के बाद तो शाहरूख ने वो किया जो शायद और कोई नहीं कर सकता है। इसलिए तो लोग किंग खान के बारे में कहते हैं वो तो 'परदेश' में भी 'मोहब्बतें' फैलाता है और उसकी 'चाहत' से तो 'दिल पागल हो जाता' है और कभी-कभी तो आलम यह होता है कि उसके प्यार से लोगों को 'डर' भी लगने लगता है और जिसके चलते 'अंजाम' यह होता है कि इंसान 'बाजीगर' बन जाता है।

जिस क्यूट शाहरूख को हम प्यार करते हैं उससे तो 'चलते-चलते' भी मुहब्बत हो जाती है और वो बड़ी ही खूबसूरती से 'दिलवालों की दुल्हनिया' ले आता है। वो शाहरूख दिलों का 'बादशाह' है तो कभी प्यार की नाकामी उसे 'देवदास' भी बना देती है तो कभी जवां दिलों से जाकर वो पूछता है कि 'कुछ कुछ होता है क्या'..।

लेकिन वो ही शाहरूख खान जब 'डॉन' बनता है या 'रा वन' के रूप में होता है तो वो लोगों को एक नये रूप में नजर आता है, और जब चेन्नई एक्सप्रेस पर वो सवार हो कर निकलता है तो लोग एंजेलिना जोली को भूलकर लुंगी डांस करने लगते हैं। क्यों आप भी इस बात को मानते हैं ना?

अमीन सयानी उस शराब का नाम है जिसका नशा कभी नहीं उतरता है

किसी शायर ने क्या खूब कहा है कि 'हुस्न तो पानी की तरह है.. वक्त के साथ बह जायेगा.. लेकिन आवाज का क्या करोगे जालिम..यह तो ताउम्र ही जवां रहती है' और शायद यह लाइनें हिंदुस्तान के सबसे चर्चित रेडियो जॉकी अमीन सयानी के ऊपर बिल्कुल फिट होती है। 81 साल की उम्र का आंकड़ा पार करने वाले अमीन की आवाज में वो ही मोहब्बत और जादूई कशिश है जो कि आज से चालीस साल पहले हुआ करती थी। 8 जून से प्रोग्राम 'सितारों की दुनिया' के जरिये एक बार फिर से अमीन सयानी की आवाज रेडियो सिटी पर सुनायी दे रही है ।

यह प्रोग्राम दिन के 12 बजे प्रसारित हो रहा है जिसका रिपीट टेलिकास्ट आप रेडियोसिटी पर ही रात को 9 बजे से रात 10 बजे तक भी सुन सकते हैं। जो लोग अमीन सयानी को सुनते हुए बड़े हुए हैं उनके लिए तो अमीन सयानी की आवाज में कोई फर्क नहीं आया है। इन्हीं में कुछ खास लोगों ने बात करते हुए कहा कि 8 जून को जैसे ही रेडियो सिटी पर दिन के 12 बजे कार्यक्रम शुरू हुआ वैसे ही हमारे जेहन से आवाज आयी कि अब कोई रेडियो पर बोलेगा कि "बहनों और भाईयों मैं बॉलीवुड से बोल रहा हूं..चलिए मेरे साथ फिल्मी दुनिया की रंगीन, सुरीली और सितारों की दुनिया में" ।

लेकिन इस बार यह टैग लाइन तो नहीं सुनायी पड़ी लेकिन आवाज वो ही कानों में पड़ी और यकीन मानिये इस आवाज में वो ही कशिश थी जो कि आज से चालीस साल पहले हुआ करती थी। जानिए कौन हैं अमीन सयानी जिसने अमिताभ को किया था रिजेक्ट? तो यह है पद्दमश्री विजेता अमीन सयानी, जिनकी शक्सियत के लोग आज भी मुरीद हैं। कहा जाता है कि अमीन के पास बॉलीवुड के ऐसे दुर्लभ साक्षात्कार हैं जो आपको कहीं नहीं मिलेंगे। आज लोगों के पास तकनीकि ज्ञान काफी है, जिसकी मदद से आज कोई भी सिंगर बन सकता है औऱ रेडियों पर जॉकी बनकर लोगों को हंसा सकता है।

लेकिन अमीन सयानी ने अपनी शैली और ज्ञान से देश में नाम कमाया है, जरा सोचिए जब देश में टीवी नहीं हुआ करता था और रेडियो ही लोगों का हमदर्द और मनोंरजन का जरिया था, उस समय अमीन सयानी ने अपनी मदहोश कर देने वाली आवाज से लोगों को अपना दिवाना बनाया था जिसकी दिवानगी आज भी कम नहीं हुई है। कई फिल्मों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके अमीन के पास ज्ञान का अथाह सागर भी है इसलिए जो उन्हें करीब से जानते हैं उनकी नजर में अमीन सयानी उस शराब का नाम है जिसका नशा कभी नहीं उतरता है।...

Saturday, January 26, 2013

आपने गणतंत्र दिवस कैसे मनाया?

आज गणतंत्र दिवस के मौके पर कोई स्कूल और कोई ऐसा मंच नहीं होगा जहां लता की आवाज में कवि प्रदीप के हाथों से लिखा गीत .. जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी' ना बजा हो.. लेकिन क्या वाकई में आज हमने किसी को याद किया है? यह सवाल किसी नेता, अभिनेता या फिर किसी मशहूर हस्ती से नहीं बल्कि आप लोगों से हैं। आज के पूरे दिन आपने क्या किया? राष्ट्रीय पर्व है आज। दशहरा, दिवाली और होली की तरह ना आपने आज नये कपड़े पहने होंगे, ना घर में पकवान बनाये होंगे। जिनके घर में बच्चे स्कूल जाते हैं उनकी जेबें भले ही ढीली होंगी लेकिन 26 जनवरी के लिए नहीं बस बच्चों की ख्वाहिश पूरी करने के लिए क्योंकि आज के दिन बच्चों को स्कूल में पर्फार्म करना होता है। सुबह से फेसबुक पर लोगों ने बधाई संदेश दिये हैं। जो ज्यादा जागरूक हैं वो सिस्टम को कोस रहे हैं। नेताओं को बुरा-भला कह रहे हैं और कह रहे हैं कि काहे का गणतंत्र दिवस, ना यहां दामिनी को न्याय मिल रहा है? ना ही भ्रष्टाचार का अंत हो रहा है और ना ही आतंकवाद खत्म हो रहा है। जो इंटरनेट पर सक्रिय नहीं वो आज अपने घर के सारे बचे काम निपटा रहे होंगे तो किसी के लिए आज छुट्टी का दिन है। आप में से कितने लोग हैं जो इस बात का जवाब हां में देंगे कि जब राष्ट्रगान की धुन टीवी पर सुनायी दी तो आप ने अपने घर में अपने बच्चों के साथ अपनी जगह पर खड़े होकर राष्ट्र गान गाया। बस मन गया राष्ट्रीय पर्व, तो आप में और देश के उन लोगों में जिन्हें आप कोस रहे हैं बताइये फर्क क्या रह गया? दोनों ने ही तो आज कुछ नहीं किया। आज किसी को शहिद हेमराज की याद नहीं आयी क्यों? क्यों आज आपमें से किसी ने यह नहीं कहा कि शहीद हेमराज आप अमर रहें। हां यह जरूर याद रहा कि सरकार ने शहीद हेमराज का सिर लाने के लिए पाकिस्तान पर दवाब नहीं डाला।

सिस्टम को दोष देते-देते हम आज अपना कर्तव्य भूल चूके हैं और यह बात हमारी आदत में इस कदर शामिल हो चुकी है कि जिससे पार पाना मुश्किल ही नहीं शायद नाममुकिन सा हो गया है? हर चीज के लिए हम लोगों को दोषी ठहरा देते हैं और आगे बढ़ जाते हैं। सिस्टम को पूरी तरह से खराब करने में क्या हमारा हाथ नहीं हैं? क्या आपको नहीं लगता कि अधिकारों की बात करते-करते हम देश के प्रति अपने कर्तव्य को भूल चूके हैं। हमें यह तो याद है कि हमें यह चीज नहीं मिली लेकिन यह याद नहीं कि हमें यह चीज क्यों नहीं मिली? यह 'क्यों' शब्द शायद हमारे शब्दकोश से गायब ही हो चुका है जो कि देश में फैली अराजकता का अस्सी प्रतिशत जिम्मेदार है। जिसके कारण आज देश का हर नागरिक कहीं ना कहीं अकर्मठ हो गया है। आज हमसभी 'हम' की बात ही नहीं करते हैं आज 'हम' 'मैं' में बदल चुका है? जिसके कारण आज देश की उन समस्याओं जिनके बारे में हर कोई केवल बात कर रहा है उसके लिए हम भी कहीं ना कहीं दोषी है। आदर्शो और न्याय की बात करने के लिए लोगों को आदर्श व्यक्तित्व पेश करना होता है, तभी उसकी मांग सही होती है लेकिन जब हम खुद न्यायोचित काम नहीं करते हैं तो हमें दूसरों से शिकायत का भी कोई हक नहीं है? जिस दिन हम यह बात समझ जायेंगे उस दिन शायद देश की आधे से ज्यादा मुश्किलों का हल निकल आयेगा। लेकिन हालात और वर्तमान के परिवेश में नही लगता कि वो दिन जल्दी आयेगा? लेकिन जिस दिन भी आयेगा ना, उस दिन वाकई में हम सही में गणतंत्र हो जायेंगे। आप क्या कहते हैं? अपनी बात जरूर से जरूर लिखें, हमें उत्तर का इंतजार रहेगा?



Wednesday, January 2, 2013

'रैपर' हनी सिंह बन गया 'रेपिस्ट'

पंजाबी रैपर हनी सिंह.. जिनके गानों ने रिकार्ड पर रिकार्ड बनाये हैं आज सवालों के घेरे में हैं उन पर मुकदमा किया गया है। वजह है अश्लील शब्दों का प्रयोग धड़ल्ले से अपने गानों  में करना। लेकिन  केस तो आज  दर्ज हुआ है वो भी उस गाने पर जो कि एक साल पहले मार्केट में आया था। 'मैं हूं बलात्कारी'...सांग ने एक साल पहले ही लोकप्रियता बटोरी ली थी  और धड़ल्ले से पैसे कमाये थे।

ऐसी कोई पंजाबी शादी नहीं होगी जहां हनी के गाने नहीं बजे, लोगों ने जमकर बारातों में ठुमके लगाये लेकिन ना तो कोई हंगामा मचा और ना ही कोई बवाल हुआ। लेकिन आज करीब एक साल बाद जब दिल्ली में एक मासूम लड़की कुछ लोगों के हवस का शिकार हो गयी औऱ लोग सड़कों पर निकल आये तो समाज के ठेकेदार अचानक से जाग गये और हनी सिंह पर एक्शन ले लिया।

मालूम हो कि साल 2009 से ही हनी सिंह ने पंजाबी रैप संगीत में अश्लीलता परोसनी शुरू कर दी थी। लोगों को उसका यह प्रयोग पसंद आ रहा था तो उसने अपना यह प्रयोग धड़लल्ले से जारी रखा और वो पंजाबी रैप म्यूजिक का सरताज बन बैठा। दौलत और शौहरत की इस आंधी में वो यह भी भूल बैठा कि वो उसने बड़ी आसानी से धीरे-धीरे रैप म्यूजिक  का रेप कर दिया है।

अगर आप हनी सिंह के एक-एक वीडियो पर गौर फरमाये तो उसमें अश्लीलता के सिवाय और कुछ नहीं मिलेगा लेकिन लोग धड़ल्ले से उसकी इस कोशिश का हिस्सा बनते गये और मनोरंजित होते रहे जिसका परिणाम यह हुआ कि हनी सिंह जैसे सुरों के महारथि ने संगीत का ही बलात्कार कर दिया।

भले ही आज दोषी बना कर उस पर केस दर्ज किया गया है लेकिन यहां सोचने वाली बात यह है कि इन दोषियों के जन्मदाता कौन हैं? क्योंकि अगर समाज से अश्लीलता और अपराध को रोकना है तो पहले उसका खात्मा करना पड़ेगा जो  कि अश्लील गायकों के जनक हैं।

मालूम हो कि  हनी सिंह का के खिलाफ अश्लील गाने गाने और महिलाओं के लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोंग करने के जुर्म में लखनऊ में FIR दर्ज करायी गयी है। जिसे  दर्ज कराया है कि पूर्व वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी  अमिताभ ठाकुर ने।

अमिताभ ठाकुर का कहना है  कि हनी सिंह ने अश्लीलता और भद्देपन की सभी सीमाएं लांघने वाले गाने ‘मैं हूं बलात्कारी' और ‘केंदे पेचायिया' गाने लिखे और गाये हैं जो कि समाज में गलत चीजों को प्रसारित करते हैं। ये गाने अत्यंत अश्लील, उत्तेजक और अभद्र होने के कारण भारतीय दंड विधान की विभिन्न धाराओं के तहत अपराध की श्रेणी में आते हैं। इसलिए हनी सिंह के खिलाफ उन्होंने मुकदमा किया है।

Wednesday, October 10, 2012

गजल सम्राट जगजीत सिंह को गये आज एक साल पूरा हो गया. आज ही के दिन उन्होंने जिंदगी का साथ छोड़ दिया था और बिना किसी से कहे...सबसे बहुत दूर चले गये जहां से वो कभी भी वापस नहीं आ सकते हैं। लेकिन कहते हैं ना कि इंसान मरता है आवाज नहीं मरती उसी तरह से जगजीत सिंह भी हमारे बीच में अपनी मखमली आवाज के जरिये हमेशा मौजूद रहेंगे।

गजल गायिकी को एक मुक्कमल मुकाम देने वाले जगजीत सिंह ने पिछले साल मुंबई के लीलावती अस्पताल में 70 साल की उम्र में जिंदगी को अलविदा कहा था,  जहां वो पिछले दो हफ्ते से ब्रेन हेमरेज के कारण भर्ती थे। 8 फरवरी 1941 को राजस्थान के गंगानगर में जन्मे जगजीत सिंह गायिकी के सरताज कहे जाते हैं। उन्होंने गजल को नया आयाम दिया।
करोड़ों सुनने वालों के चलते सिंह साहब कुछ ही दशकों में जग को जीतने वाले जगजीत बन गए। शुरूआती शिक्षा गंगानगर के खालसा स्कूल में हुई और बाद पढ़ने के लिए जालंधर आ गए। डीएवी कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली और इसके बाद कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय से इतिहास में पोस्ट ग्रेजुएशन भी किया। उन्हें पहला ब्रेक गुजरात फिल्म के लिए मिला।
लेकिन उसके बाद संगीत के जूनन ने उन्हें मायानगरी मुंबई पहुंचा दिया, जहां उन्होंने अपने सुरों से वो इबादत लिखी जिसे मिटा पाना नामुमकीन है। अपनी आवाज से लोगों के बीच पहचान बनाने वाले जगजीत सिंह 1969 में मशहूर गायिका चित्रा से प्रेम विवाह रचाया।
अर्थ, प्रेमगीत, लीला, सरफरोश, तुम बिन, वीर जारा ये वो फिल्में हैं जिन्होंने उनको हिंदी सिनेमा जगत पर शिखर पर पहुंचाया। लेकिन अपने स्टेज शो के जरिये उन्होंने उर्दू से भरी गजलों को आम आदमी की आवाज बना दिया।
फिल्मी सितारों को ही नहीं, बल्कि अटल बिहारी जैसे कवि की रचना गाकर जगजीत सिंह ने ये जता दिया कि वो केवल गीतकारों के गीत ही नहीं गा सकते हैं। पंजाबी, बंगाली, गुजराती, हिंदी और नेपाली भाषाओं में गाना गाने वाले जगजीत सिंह को पद्मश्री और पद्मविभूषण से नवाजा जा चुका है।
अपने जवान बेटे को एक सड़क दुर्घटना में खो देने का गम उनकी गजल और रचनाओं में अक्सर सुना जाता था। इसलिए शायद आज भी उनकी गजलों में वो दर्द अक्सर छलकता है जो सुनने वालों के दुखों को कम कर देता है।
नींद भी देखी..ख्वाब भी देखा...कोई नहीं है ऐसा...सही में जगजीत सिंह जैसा कोई ना था, ना है और ना ही होगा। संगीत के उपासक, गजल के पूजारी और सुंरों के सरताज जगजीत सिंह की आत्मा के लिए हम भी प्रार्थना करते हैं। वाकई आज उनके अंदाज में ही पूरा देश उन्हें याद कर रहा है और कह रहा है ..
तुम चले जाओगे तो सोचेंगे
हमने क्या खोया हमने क्या पाया
हम जिसे गुनगुना नहीं सकते
वक्त ने ऐसा गीत क्यूं गाया....

Thursday, January 12, 2012

किसी भी पार्टी को नहीं चाहिये मिडिल क्‍लास का वोट!


चुनावी दंगल में हर पार्टी पूरी कोशिश कर रही है कि वो किसी भी तरह अपने वोटरों को रिझा ले। कहीं मुस्लिम आरक्षण की बात हो रही है तो कहीं दलित वोटो के लेकर खींचा- तानी मची हुई है। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी यूपी में अतिपिछड़ा रैली कर रहे हैं तो भाजपा दलितों को रिझाने के लिए उमा भारती और कटियार को चुनावी मैदान में उतारने की सोच रही है तो वहीं सपा की क्रांति रथयात्रा मुसलमानों को अधिक आरक्षण का लोभ दे रही है। मायावती तो पहले ही अपने आप को दलितों की मसीहा बता चुकी है।

लेकिन सोचने वाली बात यह है कि क्या उत्तर प्रदेश का पूरा वोट दलितों और मुस्लिमों पर ही सिमट गया है। क्या 403 सीटों पर होने वाले चुनाव केवल मुस्लिम और दलित लोगो के लिए हो रहे हैं। इससे तो सिर्फ दो बातें निकल कर सामने आती है पहली तो यह कि या तो सारी राजनीतिक पार्टियां यह मानकर बैठ गयी है कि सवर्णों का तो हिसाब पक्का है बस मुस्लिमों और दलितों को मनाने की जरूरत है।

दूसरी यह कि सारी पार्टियों को पहले से पता चल गया है कि सवर्णो में किस वर्ग के वोट उन्हें मिलने वाले हैं। जैसे कि ठाकुरों की पहली पसंद हो सकता है कांग्रेस हो तो पंडितों की पार्टी भाजपा हो, वगैरह..वगैरह।

बड़ी-बड़ी बातें करने वाले राजनीतिक दलों के चुनावी प्रचार में तीसरे नंबर पर आते हैं गरीब। जो किसी भी जाति या धर्म के हो सकते हैं। उनके लिए भी राजनीतिक पार्टियां तमाम योजनाएं चलाने के वादे कर रही है, लेकिन इन सबके बीच जो खो गया है वो है मध्‍यमवर्ग। यहां मध्‍यम वर्ग को हम किसी जाति या धर्म से नहीं जोड़ रहे हैं।

किसी भी पार्टी के पास न तो मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए कोई योजना है और ना ही किसी तरह का कोई जिक्र। किसी भी पार्टी के एजेंडे में यह बात नहीं है कि अगर वो सत्ता में आते हैं तो समाज के मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए क्या करेंगे। जबकि सरकार के नीतियों की सबसे ज्यादा मार इसी वर्ग को पड़ती है।

ना तो वो गरीबी रेखा के नीचे आते हैं कि उन्हें किसी सरकारी योजना का लाभ मिले और ना तो वो इतनी कमाई कर पाते हैं कि वो अपना लंबा-चौड़ा बैंक-बैलेंस बना कर भविष्य सुरक्षित रख लें। आये दिन बढ़ती महंगाई की मार उन्‍हें ही सबसे ज्‍यादा पड़ती है और भ्रष्टाचार से भी यही वर्ग सबसे ज्‍यादा पीड़ित हैं। सबसे अहम बात यह है कि अगर यह वर्ग जागरूक हो जाये तो वो किसी भी चुनाव के राजनीतिक समीकरण बदल सकता है।

आश्चर्य की बात यह है कि इस ओर आखिर किसी पार्टी की ओर से कई कदम क्यों नहीं उठाया जा रहा है। सोचने वाली बात यह भी है कि आखिर कोई पार्टी मिडिल क्लास के लिए कोई दमदार योजना क्‍यों नहीं लाती या ऐसे पैकज लेकर क्‍यों नहीं आती, कोल्‍हू के बैल वाली जिंदगी से ऊपर उठ सकें।

इस सवाल के बारे में आप क्या सोचते हैं अपने जवाब नीचे लिखे कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें।

Wednesday, December 28, 2011

मैं हूं, मैं हूं, भ्रष्टाचार


मैं हूं, मैं हूं, भ्रष्टाचार
करता लोगों का जीना हराम
चले हैं अन्ना मुझे भगाने
लोकपाल का डंडा दिखाने
तीसरी बार किया है अनशन
फिर भी नहीं हो पाया मंथन
चलें हैं इस बार जेल भरने
सोनिया के घर धरना देने
है तो बड़ा यह मुश्किल काम
देखते हैं क्या होगा अंजाम?
संसद में भी जंग है जारी
लोकपाल को लाने की तैयारी
सुषमा कहतीं बुरी सरकार
मजबूर,बेबस और लाचार
पीएम साहब बड़े ईमानदार
अर्धशास्त्र का रखते ज्ञान
पर ठहरे सोनिया के दुलारे
फिरते रहते मारे-मारे
देश हो गया है कंगाल
महंगाई ने ले ली जान
सिसक रहा हर इंसान
फिर भी अंधी है सरकार
तभी खड़े हुए लालू साहब
आरक्षण की छेड़ी तान
दिया लोगों को बुद्धि ज्ञान
चिल्लाकर बोले, स्पीकर साहिबा
बंद करो यह तकरार
नहीं बनेगा लोकपाल
दिल में आया मेरे ख्याल
भारत तो है मेरी जान
नहीं छोड़ूंगा इसका साथ
मैं हूं,मैं हूं..भ्रष्टाचार...